Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
शुं काम छे? ए तो बधा माराथी अत्यंत दूर छे. –आम बहारमां सर्वत्र निस्पृह
थईने धर्मीए पोतानुं चित्त चैतन्यसुखमां जोडयुं छे, –ते ज मोक्ष माटेनी परम
भक्ति छे.
(९७)
वाह रे वाह! निजतत्त्व केवुं सुंदर छे! आ तत्त्व तो राग–द्वेष वगरनुं छे, ने
आवा स्वतत्त्वमां झुकेली परिणति पण राग–द्वेष वगरनी ज छे. –आवा
परमतत्त्वने हुं फरी–फरीने सम्यक्पणे भावुं छुं. –आम स्वसन्मुख थईने
परमात्मतत्त्वनी भावना ते ज परम भक्ति छे; ते भवनो छेद करनारी छे ने.
अशरीरी मोक्षनो महा आनंद देनारी छे.
(९८)
परमात्मतत्त्व जेणे नजरमां लीधुं– ते जीव न्याल थई गयो. तेनी पर्यायमां
परमात्मा आवीने वस्या... ते परमात्माना मार्गे चाल्यो. परमात्मानो मार्ग
कहो, के आत्माना सुखनो मार्ग कहो, स्वसन्मुख थईने आवुं आत्मसुख जेणे
चाख्युं तेने संसारसंबंधी कोई सुखमां सुख लागतुं ज नथी, तेमां तो दुःख छे;
आकुळता छे. तेथी समस्त भवसुखनी वांछा छोडीने ते पुन: पुन: निज
परमात्मतत्त्वमां ज चित्तने जोडे छे, वारंवार परमात्मतत्त्वनी एकनी
ज भावना भावे छे. एकक्षण पण साधकनी द्रष्टि परमात्मतत्त्वमांथी
हटती नथी.
(९९)
जुओ, तीर्थंकर भगवंतोए आ रीते चित्तने चैतन्यतत्त्वमां जोडीने मोक्षसुखने
साध्युं, एटले सर्वे जीवोने माटे पण आ ज मोक्षनो उपाय छे. तेथी आचार्यदेवे
कह्युं के–
ऋषभादि जिनवर ए रीते करी श्रेष्ठ भक्ति योगनी,
शिवसौख्य पाम्या; तेथी कर तुं भक्ति उत्तम योगनी.
जुओ तो खरा, आचार्यदेवे बधाय जिनवरोनी साक्षी आपीने मोक्षना
कारणरूप आ भक्ति बतावी. आ परमात्मभक्ति भवनो छेद करनारी छे ने
मोक्षसुख देनारी छे. माटे हे भव्यजीवो! तमे पण आत्माना उपयोगने अंतरमां
जोडीने मोक्षना कारणरूप आवी भक्ति करो.
परमार्थरूप एवी आ सिद्धभक्ति भवदुःखनो अंत करनारी छे ने आत्माने
मोक्षसुखनो महा आनंद देनारी छे.