
थईने धर्मीए पोतानुं चित्त चैतन्यसुखमां जोडयुं छे, –ते ज मोक्ष माटेनी परम
भक्ति छे.
परमतत्त्वने हुं फरी–फरीने सम्यक्पणे भावुं छुं. –आम स्वसन्मुख थईने
परमात्मतत्त्वनी भावना ते ज परम भक्ति छे; ते भवनो छेद करनारी छे ने.
अशरीरी मोक्षनो महा आनंद देनारी छे.
परमात्मा आवीने वस्या... ते परमात्माना मार्गे चाल्यो. परमात्मानो मार्ग
कहो, के आत्माना सुखनो मार्ग कहो, स्वसन्मुख थईने आवुं आत्मसुख जेणे
चाख्युं तेने संसारसंबंधी कोई सुखमां सुख लागतुं ज नथी, तेमां तो दुःख छे;
आकुळता छे. तेथी समस्त भवसुखनी वांछा छोडीने ते पुन: पुन: निज
ज भावना भावे छे. एकक्षण पण साधकनी द्रष्टि परमात्मतत्त्वमांथी
हटती नथी.
साध्युं, एटले सर्वे जीवोने माटे पण आ ज मोक्षनो उपाय छे. तेथी आचार्यदेवे
कह्युं के–
शिवसौख्य पाम्या; तेथी कर तुं भक्ति उत्तम योगनी.
मोक्षसुख देनारी छे. माटे हे भव्यजीवो! तमे पण आत्माना उपयोगने अंतरमां
जोडीने मोक्षना कारणरूप आवी भक्ति करो.