Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : ३३ :
दशलक्षणी पर्युषण पर्वना दिवसो दरमियान
कार्तिकेयस्वामीनी द्वादशअनुप्रेक्षामांथी दश धर्मो वंचाया हता.
ते उपरांत नियमसारमां परम आवश्यक अधिकार अने
समयसारमां सर्वविशुद्धज्ञान–अधिकार वंचाता हता; तेमांथी
थोडीक वानगी अहीं आपी छे.
* जैनधर्मना पर्युषणमां आजे उत्तमक्षमानो प्रथम दिवस छे. बीजा प्रत्ये क्रोध
करीने हे जीव! तारी शांतिने तुं नुकशान न पहोंचाडीश. जगतमां प्रतिकूळतानो
संयोग आवे, के कोई निंदा करे, तो तुं तेने वश थईने तारा उत्तम मार्गने
छोडीश नहि; क्रोध करीने तारा धर्मना वृक्षने बाळीश नहि. उत्तम क्षमादि धर्मनी
आराधनामां तारा आत्माने परम भक्तिथी जोडजे. क्रोधवडे तारी शांतिने
भस्म करीश मा. क्रोध वगरनो जे चैतन्यस्वभाव तेनी आराधना ते ज
उत्तमक्षमाधर्म छे. वीतरागीमुनिओ आवा उत्तमक्षमादि धर्मना आराधक छे; ने
ते धर्मोने भक्तिपूर्वक जाणीने श्रावकोने पण एकअंशे तेनी आराधना होय छे.
जेटलो वीतरागभाव थयो तेटली आराधना निरंतर छे.
* निजस्वरूपनी बहार आवीने एक विकल्प पण ऊठे तो ते दोष छे, तेमां
कोलाहल छे, तेमां चैतन्यनी शांति नथी. माटे हे मुमुक्षु! विकल्पना कोलाहलना
ककळाटथी भिन्न एवा तारा शांत चैतन्यतत्त्वने स्व–आश्रित ध्यानथी ध्याव. –
तेमां ज परमसामायिक ने उत्तम क्षमा छे.
* शांति माटे दुनियाने तो भूल... अंदरना तारा विकल्पोना कोलाहलथी पण दूर
था... ने एकत्वमां शोभता तारा आत्माने निर्विकल्पध्यानमां ध्याव. कदाच तारी
शक्ति ओछी होय ने ध्यानमां विशेष एकाग्र न रही शकतो होय तो, त्यां सुधी आवा