Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : आसो र४९९ :
पोतामां पण रत्नत्रयधर्मनी वृद्धि थाय तेम प्रवर्ते छे.
भाई, आवुं मनुष्यपणुं ने आत्माने साधवानो आवो अवसर–एनी एकेक
क्षण अमूल्य छे; तेमां अत्यारे आत्मानो निर्णय करीने पोतानुं काम करी
लेवा जेवुं छे. –ए ज आत्मानुं साचुं हितरूप कार्य छे. स्वानुभूतिवडे
सम्यग्दर्शनादि कार्य कर्युं त्यारे ज आत्मा साचो कर्ता थयो, त्यारे ज ते
धर्मनो कर्ता थयो, एटले मोक्षनो साधक, धर्मात्मा थयो. त्यार पहेलांं तो
अज्ञानथी रागनो कर्ता थतो हतो, ने धर्मनो कर्ता थतो न हतो. हवे रागनो
अकर्ता थईने धर्मनो कर्ता थयो, तेथी ते ज साचो कर्ता छे.
जीवनो कोईपण भाव–ते धर्म छे के नहीं? ते मोक्षनुं कारण छे के नहीं? –ते
नक्की करवानुं एक सहेलुं त्राजवुं आ छे के–
* ते भाव जीवना पांच भावमांथी क््यो भाव छे?
* जो ते भाव औदयिकभाव छे–तो तरत ज समजी लेवुं के ते धर्म नथी, ते
मोक्षमार्ग नथी.
* जेटला उदयभावो छे ते बधामांथी कोई पण मोक्षनुं कारण नथी,
एटले ते धर्म नथी.
* बंधना कारणरूप जे कोई भावो होय ते बधाय उदयभाव छे; तेने
मोक्षनुं साधन न मानवुं, तेने धर्म न मानवो.
शुद्धात्मानी श्रद्धा–ज्ञान–अनुभूति वगर बहारनुं के शास्त्रनुं गमे तेटलुं
जाणपणुं होय पण ते खरूं ज्ञान नथी, मोक्षमार्गमां तेनी कांई किंमत नथी.
मोक्षमार्गनुं मूळ तो सम्यग्दर्शन छे. आत्मानुं परम गंभीर स्वरूप जेवुं छे
तेवुं ज्ञानमां लईने तेनी सम्यक्श्रद्धा करे ते जीवने बीजुं जाणपणुं भले थोडुं
होय तोपण ते मोक्षना मार्गमां छे, आराधक छे. माटे हे भव्य! बीजु तने
आवडे के न आवडे, पण आत्मतत्त्वनी सम्यक्श्रद्धाने बराबर टकावी
राखजे. सम्यग्दर्शन वडे पण तारुं आराधकपणुं चालु रहेशे.
कोई जीवने सम्यग्दर्शन होय ने चारित्रदशा–मुनिदशा अत्यारे न होय
तोपण ते आराधक छे, ने अल्पकाळमां चारित्रदशा प्रगट करीने ते तो
मोक्ष पामशे.