Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: आसो र४९९ : आत्मधर्म : ११ :
पण जे जीवने सम्यग्दर्शन नथी ते तो अनंतकाळे पण मोक्ष पामतो नथी.
सम्यग्दर्शन वगर ज्ञान–चारित्र वगेरे कोई धर्मो साचा होतां नथी. माटे
सम्यग्दर्शनने धर्मनुं मूळ जाणीने हे भव्य! तुं तेनी आराधनामां द्रढ रहेशे.
आहा! सम्यग्दर्शन तो जगतनुं अलौकिक रत्न छे... निर्विकल्प चैतन्यनो
स्वाद ते चखाडे छे. आवा सम्यग्दर्शन–रत्नना मूल्यथी तो मोक्ष मळे छे.
सम्यक्त्व वगरनुं शास्त्रज्ञान के तपस्या करे तोपण ते जीव मिथ्याद्रष्टिपणे
संसारमां ने संसारमां ज भम्या करे छे. सम्यग्दर्शनरूपी पवित्र जळ तो
पापनो नाश करीने उत्कृष्टज्ञान पमाडे छे. आवा सम्यकत्वनो पवित्र प्रवाह
जेना अंतरमां वर्ते छे ते आराधक जीव ज्ञानादि गुणोनी वृद्धि करतो करतो
मोक्षने पामे छे. आ रीते सम्यकत्वनो अपार महिमा जाणीने तेनी
आराधना करो. आत्मानी अपूर्व शांतिनुं वेदन ए ज साची आराधना छे.
अरिहंतोनुं परम सुख
[तेनी ओळखाणनुं फळ]
श्री अरिहंत भगवंतो परम अतीन्द्रिय सुखी छे.
शुं तीर्थंकरप्रकृतिनो उदय छे ते कारणे तेओ सुखी छे? के शुं समवसरणनो संयोग
के ईंद्रोद्वारा पूज्यताने कारणे तेओ सुखी छे? –ना; तीर्थींकरप्रकृतिने लीधे के समवसरणना
संयोगने लीधे ते अरिहंतो सुखी नथी, (केमके बधाय अरिहंतोने कांई तीर्थंकरप्रकृति होती
नथी, छतां तेओ परम सुखी छे.) तेओ तो पोताना चैतन्यभावथी ज स्वयमेव सुखी छे.
अतीन्द्रियज्ञानरूपे परिणमेला होवाथी तेओ स्वयंभू–सुखी छे. अने पोते ज सुखरूप–सुखी
थया होवाथी, तीर्थंकरप्रकृति वगर के समवसरणादि वगर पण सुखी रहे छे. तेमनुं सुख
कर्मोदयना कार्योथी न्यारुं ज छे. तेमनुं सुख कर्मोना उदयजनित नथी, पण कर्मोना
क्षयजनित छे.
ते अरिहंतोने ते काळे उत्तम पुण्यफळ विद्यमान हो भले, [पुण्णफला अरहंता]
–परंतु तेमनुं सुख कांई ते पुण्यफळने लीधे नथी. पुण्यफळ ते तो उदयभाव छे, ने
अरिहंतोनुं सुख तो क्षायिकभावे छे. एवा अरिहंतोनी साची ओळखाण करनारने
चैतन्यना अतीन्द्रिय सुखनो स्वाद आवे छे.
अरिहंतोना आवा अतीन्द्रियसुखनी श्रद्धा सम्यग्द्रष्टि ज करे छे.
श्री कुन्दकुन्दस्वामी कहे छे के–
जे जाणतो अर्हंतने गुण–द्रव्य ने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने तसु मोह पामे लय खरे.