Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: आसो र४९९ : आत्मधर्म : १३ :
केवळज्ञान अने मोक्ष पाम्या. नेमनाथप्रभुना तीर्थंमां तेओ अंतकृत केवळी थयां. तेमना
केवळज्ञान अने निर्वाण बंने कल्याणक देवोए एकसाथे कर्यां.
गजकुमारना मोक्षनी आ वात सांभळीने तरत समुद्रविजय महाराज
(नेमप्रभुना पिताजी) वगेरे नवे भाईओ (वसुदेव सिवायना) ए संसारथी विरक्त
थईने जिनदीक्षा धारण करी. माताजी–शिवादेवी वगेरोए पण दीक्षा लीधी. फरी पाछा
अनेक वर्ष विहार करी नेमप्रभु पुन: गीरनार पधार्या.
[आत्मसाधना माटे गजकुमार स्वामीना आ घोर पुरुषार्थनो प्रसंग गुरुदेवने
खूब प्रिय छे, ने अवार–नवार प्रवचनमां ज्यारे तेनुं भावभीनुं वर्णन करे छे त्यारे
मुमुक्षुनो आत्मा चैतन्यना पुरुषार्थथी थनगनी ऊठे छे, ने मोक्षना ए अडोल–
अप्रतिहत साधक प्रत्ये हृदय उल्लासथी नमी जाय छे.
]
नेमप्रभु पुन: गीरनार पधार्या, ने बळदेव–वासुदेव–प्रद्युम्न वगेरे प्रभुना दर्शने
आव्या. पछी शुं थयुं? तेनी कथा हवे वांचो.
द्वारकानगरी ज्यारे सळगी गई... त्यारे...
[द्वारका भले दग्ध थई पण धर्मात्मानी शांतपर्याय नथी सळगी]
गीरनार पर नेमप्रभुना श्रीमुखेथी दिव्यध्वनिनो वीतरागी उपदेश सांभळ्‌या
बाद, बळभद्रे विनयथी भगवानने पूछयुं– हे देव! आ अद्भुत द्वारकापुरी कुबेरे रची
छे, तो हवे तेनी केटला वर्ष स्थिति छे? जे वस्तु कृत्रिम होय तेनो नाश थाय ज. तो
आ नगरी सहेजे विलय पामशे के कोईना निमित्तथी? वासुदेवनो परलोकवास कया
कारणे थशे? –महापुरुषनुं शरीर पण कांई कायम रहेतुं नथी. अने मने संयमनी प्राप्ति
क््यारे थशे? मने जगतसंबंधी बीजा पदार्थोनुं ममत्व तो अल्प छे, मात्र एक भाई–
श्रीकृष्णना स्नेहबंधनथी बंधायेलो छुं.
नेमप्रभुए, कह्युं–आजथी बार वर्ष बाद मादकपीणानी उन्मत्तताथी यादवकुमारो