Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : आसो र४९९ :
द्वीपायनने क्रोध उपजावशे, ने ते द्वीपायनमुनि (बळभद्रना मामा) क्रोधवडे आ द्वारका
नगरीने भस्म करशे. तथा महाभाग श्रीकृष्ण कोशांबीना वनमां सूता हशे त्यारे तेमना
ज भाई जरत्कुमारना बाणथी ते परलोकने पामशे. त्यारबाद छ मास पछी तमे
संसारथी विरक्त थईने संयमदशाने धारण करशो.
जन्म–मरणनां दुःखनुं कारण तो राग–द्वेष भाव छे; अने ज्यारे पुण्यप्रतापनो
क्षय थाय त्यारे बहारमां अनेक कारण मळे छे. वस्तुस्वभावने जाणनारा ज्ञानी पुण्य
प्रताप वखते हर्ष न करे ने तेना नाश वखते विषाद न करे. वासुदेवना वियोगथी
तमने (बळभद्रने) घणो खेद थशे, पछी प्रतिबुद्ध थईने भगवती दीक्षा धारण करशो,
ने पांचमा ब्रह्मस्वर्गमां जशो, त्यांथी नरभव पामीने निरंजन थशो.
प्रभुनी आ वात सांभळीने द्वीपायन तो तरत दीक्षा धारण करीने द्वारकाथी दूर–
सुदूर विहार करी गयो.
तथा जरत्कुमार पण पोताना हाथे हरिनुं मृत्यु थवानुं सांभळीने अति दुःखी
थयो ने कुटुंब तजी दूरदूर एवा वनमां गयो के ज्यां हरिनुं दर्शन पण न थाय.
श्रीकृष्णना स्नेहने लीधे ते जरत्कुमार खूब व्याकुळ थई गयो, हरि तेने प्राण जेवा
वहाला हता, तेथी ते दूरदूर वनमां रहीने वनचरनी जेम रहेवा लाग्यो.
बीजा बधा यादवो, द्वारकानुं होनहार सांभळीने चिंताथी दुःखित हृदये द्वारका
आव्या, द्वारका तो जैनधर्मीओनी पुरी, महा दयाधर्मथी भरेली, त्यां मांस–मध तो
केवा? ज्यां बळदेव–वासुदेवनुं राज्य, त्यां कुवस्तुनी चर्चा केवी? परंतु कर्मभूमि छे
एटले कोई पापी जीवो गुप्तपणे मद्यादिनुं सेवन करता होय! –एम विचारी बळदेव–
वासुदेवे द्वारकानगरीमां घोषणा करी के कोईए घरमां मध–मांसनी सामग्री राखवी
नहि; जेनी पासे होय तेणे तरत नगरबहार फेंकी देवी. –आ सांभळी जेनी पासे मध
सामग्री हती तेमणे ते कदंबवनमां फेंकी दीधी, ने त्यां ते सुकावा लागी.
वळी श्रीकृष्णे द्वारकाना बधा नरनारीओने वैराग्य माटे घोषणा करी, गाममां
ढंढेरो पीटाव्यो के मारा पिता–माता–भाई–बेन–पुत्र–पुत्री–स्त्री अने नगरना लोको,
जेओने वैराग्य धरवो होय तेओ शीघ्र वैराग्य धारण करो, शीघ्र जिनदीक्षा लईने
आत्मकल्याण करो, हुं कोईने नहि रोकुं.