आत्मा बीजाना कार्यनुं कारण छे– एम माने, अथवा आत्मानी मोक्ष दशानुं
कारण राग छे एम माने, तो तेने कारणविपरीतता छे, साचुं ज्ञान नथी.
वगेरे पंचभूतना संयोगथी आत्मा बन्यो छे एम माने, अथवा सर्वव्यापक
ब्रह्म माने, जुदुं स्वतंत्र अस्तित्व न माने, तो तेने स्वरूप–विपरीतता छे, एटले
साचुं ज्ञान नथी.
विपरीतता छे. अथवा बीजा ब्रह्म साथे आ आत्माने अभेद मानवो, के ज्ञानने
आत्माथी जुदुं मानवुं ते पण विपरीतता छे, तेने वस्तुनुं साचुं ज्ञान नथी.
थतुं नथी.
ज्ञानमां जाणपणुं होवा छतां ते ज्ञान पोताना स्वप्रयोजनने साधतुं नथी, स्वज्ञेयने
जाणवा तरफ वळतुं नथी– ए तेनो दोष छे. अज्ञानी अप्रयोजनभूत पदार्थोने
जाणवामां तो ज्ञानने प्रवर्तावे छे पण जेनाथी पोतानुं प्रयोजन सिद्ध थाय छे एवा
आत्मानुं ज्ञान तथा स्व–परनुं भेदज्ञान तो ते करतो नथी, माटे तेने ज्ञानमां पण भूल
छे. मोक्षना हेतुभूत स्तत्त्वने जाणवारूप प्रयोजनने साधतुं न होवाथी ते ज्ञान मिथ्या
छे. भगवानना मार्गअनुसार जीवादितत्त्वोनुं स्वरूप बराबर ओळखतां अज्ञान टळे छे
ने साचुं ज्ञान थाय छे; साचुं ज्ञान ते परम अमृत छे, अमृत एवा मोक्षसुखनुं ते कारण
छे. माटे हे भव्य जीवो! तमे आवा सम्यग्ज्ञाननुं सेवन करो.
अतीन्द्रियपणुं थयुं छे. आवुं सम्यग्ज्ञान ते मोक्षमार्गनुं बीजुं रत्न छे. उपयोग
शुद्धात्मा–सन्मुख वळतां आ सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान बंने रत्नो एकसाथे