Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 29 of 45

background image
: र६ : आत्मधर्म : आसो र४९९ :
विपरीतता, स्वरूप–विपरीतता अने भेदाभेद विपरीतता.
आत्मा छे एम माने पण तेनी पर्यायनुं कारण परद्रव्य छे एम माने, अथवा
आत्मा बीजाना कार्यनुं कारण छे– एम माने, अथवा आत्मानी मोक्ष दशानुं
कारण राग छे एम माने, तो तेने कारणविपरीतता छे, साचुं ज्ञान नथी.
आत्मा छे एम तो कहे पण ईश्वरे तेने बनाव्यो छे एम माने, अथवा पृथ्वी
वगेरे पंचभूतना संयोगथी आत्मा बन्यो छे एम माने, अथवा सर्वव्यापक
ब्रह्म माने, जुदुं स्वतंत्र अस्तित्व न माने, तो तेने स्वरूप–विपरीतता छे, एटले
साचुं ज्ञान नथी.
गुण अने गुणीनो सर्वथा भेद माने, के सर्वथा अभेद माने तो तेने भेदाभेद
विपरीतता छे. अथवा बीजा ब्रह्म साथे आ आत्माने अभेद मानवो, के ज्ञानने
आत्माथी जुदुं मानवुं ते पण विपरीतता छे, तेने वस्तुनुं साचुं ज्ञान नथी.
आ प्रमाणे अज्ञानी जे कांई जाणे छे तेमां तेने कोईने कोई प्रकारे विपरीतता
होवाथी तेनुं बधुंय जाणपणुं मिथ्याज्ञान ज छे, मोक्षने साधवा माटे ते कार्यकारी
थतुं नथी.
ज्ञानमां मिथ्याश्रद्धाने कारणे ज मिथ्यापणुं छे के ज्ञानमां पोतामां कांई दोष छे?
एवा प्रश्नना उत्तरमां पं. टोडरमलजी कहे छे के, अज्ञानीने ज्ञानमां पण भूल छे; केमके
ज्ञानमां जाणपणुं होवा छतां ते ज्ञान पोताना स्वप्रयोजनने साधतुं नथी, स्वज्ञेयने
जाणवा तरफ वळतुं नथी– ए तेनो दोष छे. अज्ञानी अप्रयोजनभूत पदार्थोने
जाणवामां तो ज्ञानने प्रवर्तावे छे पण जेनाथी पोतानुं प्रयोजन सिद्ध थाय छे एवा
आत्मानुं ज्ञान तथा स्व–परनुं भेदज्ञान तो ते करतो नथी, माटे तेने ज्ञानमां पण भूल
छे. मोक्षना हेतुभूत स्तत्त्वने जाणवारूप प्रयोजनने साधतुं न होवाथी ते ज्ञान मिथ्या
छे. भगवानना मार्गअनुसार जीवादितत्त्वोनुं स्वरूप बराबर ओळखतां अज्ञान टळे छे
ने साचुं ज्ञान थाय छे; साचुं ज्ञान ते परम अमृत छे, अमृत एवा मोक्षसुखनुं ते कारण
छे. माटे हे भव्य जीवो! तमे आवा सम्यग्ज्ञाननुं सेवन करो.
सम्यग्दर्शन साथेनुं ज्ञान पोताना आत्माने परथी भिन्न चिदानंदस्वरूप जेवो छे
तेवो स्वसंवेदनपूर्वक अतीन्द्रियज्ञानथी जाणे छे. सम्यग्दर्शन साथेना सम्यग्ज्ञानमां अंशे
अतीन्द्रियपणुं थयुं छे. आवुं सम्यग्ज्ञान ते मोक्षमार्गनुं बीजुं रत्न छे. उपयोग
शुद्धात्मा–सन्मुख वळतां आ सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान बंने रत्नो एकसाथे