छे– आवो मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन थतां चोथा गुणस्थाने शरू थाय छे. सिद्धप्रभुना
आनंदनो नमुनो चाखतुं सम्यग्दर्शन प्रगट्युं त्यां एकसाथे अनंतगुणमां निर्मळ कार्य
थवा मांड्युं छे.
संबंधी दोषनो अभाव होवाथी ते सम्यग्दर्शनने ‘गुण’ कहेवाय छे. मिथ्यात्व ते
मलिनता ने दोष छे, तेनी सामे सम्यग्दर्शन ते पवित्र गुण छे, तेमां शुद्धता छे,
निर्मळता छे तेथी तेने गुण कह्यो. तेमां अभेद आत्मानी निर्विकल्प प्रतीत छे, ते
मोक्षपुरीमां प्रवेशवानो दरवाजो छे.
पूरुं थाय. सम्यग्ज्ञान स्व–परने, भेद–अभेदने, शुद्ध–अशुद्धने, बधायने जेम छे तेम
जाणीने पोताना आत्माने परभावोथी भिन्न साधे छे.
आत्मानो स्वीकार छे. सम्यग्दर्शनपर्यायमां स्वसन्मुखता छे, सम्यग्दर्शनमां
परसन्मुखता नथी. शुं पर सामे जोये सम्यग्दर्शन थाय छे? –ना; कोई परनी सामे
जोयेथी (देव–गुरुनी सन्मुखताथी पण) सम्यग्दर्शन थतुं नथी. पोताना भूतार्थ
आत्मानी सन्मुखताथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन–पर्याय श्रद्धा गुणनी छे, ने
श्रद्धागुण आत्मानो छे, तो आत्मानी सन्मुख थया वगर सम्यग्दर्शन पर्याय क््यांथी
थशे? श्रद्धागुण ने तेनी सम्यग्दर्शनपर्याय ते तो आत्मानुं निजस्वरूप छे; ते
निजस्वरूपनी सन्मुख थतां ते पोते श्रद्धागुणनी निर्मळपर्यायरूपे परिणमे छे. आ
जीवनो श्रद्धागुण कांई बीजा कोई देव–गुरु–शास्त्र पासे नथी, – के तेमांथी
सम्यग्दर्शनपर्याय आवे! श्रद्धागुण ज्यां होय त्यांथी तेनी सम्यग्दर्शनपर्याय आवे.
श्रद्धागुण आत्मवस्तुनो छे तेनी अखंड प्रतीत वडे सम्यक्त्वरूप शुद्धपर्याय प्रगटे छे.
सम्यक्त्वनी जेम बधा गुणोनी शुद्धपर्यायो पण स्वाश्रये प्रगटे छे–एम समजी लेवुं.