Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: र८ : आत्मधर्म : आसो र४९९ :
शुं आत्मानो कोई गुण रागमां छे? – ना;
–तो रागनी सन्मुखताथी कोई गुण प्रगटे नहि.
शुं आत्मानो कोई गुण निमित्तमां छे? – ना;
–तो निमित्तनी सन्मुखताथी कोई गुण प्रगटे नहि.
शुं आ आत्मानो कोई गुण देव–गुरु–शास्त्र पासे छे? –ना;
–तो तेमनी सन्मुखताथी कोई गुण प्रगटे नहीं.
भगवान आत्माना सर्वे गुणो पोतामां ज छे, बीजे क्यांय नथी; माटे आत्मानी
पोतानी सामे जोये ज सर्वे गुणो प्रगटे छे, पर सामे जोये कोई गुण प्रगटतो नथी.
त्रिकाळी गुणस्वभाव पोतामां छे तेनी सन्मुख थतां ज सम्यग्दर्शन थयुं, सम्यग्ज्ञान
थयुं, आनंद पण थयो, ने अनंतगुणनी निर्मळताना वेदनसहित मोक्षमार्ग खूली
गयो... पोतानुं आनंदमय स्वघर जीवे देखी लीधुं.
हे भाई! आ तारा निजघरनी वात छे. तारा स्वघरनी वात तुं होंशथी सांभळ.
अनादिथी रागादि परघरने ज पोतानुं मान्युं हतुं; अहीं सर्वज्ञ परमात्मा अने संतो
तने तारुं स्वघर बतावे छे, ने अंतरमां मोक्षना दरवाजा खुली जाय छे. सम्यग्दर्शन तो
धर्मनो मूळ एकडो छे, तेने भूलीने जीव जे कांई करे तेनाथी जन्म–मरणना आरा नहि
आवे. माटे, जे अनंतकाळमां पूर्वे नथी करेल अने जे प्रगट करतां ज जन्म–मरणनो
अंत आवीने मोक्ष तरफनुं परिणमन शरू थई जाय छे. –एवुं सम्यग्दर्शन शीघ्र
आराधवा योग्य छे. ते सम्यग्दर्शन सहित सम्यग्ज्ञाननी विशेष आराधनानुं वर्णन
चाले छे.
समवसरणनी वच्चे गणधरो अने सो ईंद्रोनी उपस्थितिमां सर्वज्ञवीतराग
भगवाननी दिव्यवाणी छूटती हती, गणधर भगवंतो ते झीलता हता; ते झीलीने
गणधरोए तेम ज कुंदकुंदाचार्य वगेरे वीतरागी संतोए जे समयसारादि परमागमो
रच्या, तेनी ज परंपरा जैनमार्गमां चाली रही छे; तेने अनुसरीने ज पं. दौलत
रामजीए आ छढाळानी रचना करी छे. तेमां कहे छे के हे जीव! तारा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
आनंद वगेरेनी खाण जडमां नथी, रागमां नथी, विकल्पमां नथी, तारा आत्मानो
श्रद्धागुण ज तारा सम्यग्दर्शननी खाण छे, तारो ज्ञानगुण ज तारा ज्ञाननी खाण छे,
तारो आनंदगुण ज महाआनंदनी खाण छे; अनंतगुणनी खाण तारा आत्मामां छे,
आवा आत्मानी सन्मुख थतां आत्माना श्रद्धा वगेरे अनंतगुणोनुं सम्यक्