: आसो र४९९ : आत्मधर्म : १ :
वार्षिक वीर सं. र४९९
लवाजम आसो
चार रूपिया Oct. 1973
वीरनाथ भगवान
प्रभो, आपनो आ अवतार धर्मअवतार हतो,
मोक्षने साधवा माटे ज आपनो अवतार हतो. आपे मोक्षने
साधीने अमारा माटे पण मोक्षनो मार्ग खुल्लो कर्यो.
अत्यारे पण मोक्षना आनंदनो मधुर स्वाद चखाडनारुं
आपनुं शासन जयवंत वर्ती रह्युं छे. ज्यां ज्यां आपनुं
शासन वर्ती रह्युं छे त्यां त्यां आपश्री विद्यमान ज छो,
आपनो विरह अमने नथी.
आपनुं शासन एटले? –जगतना समस्त जीव–
अजीव पदार्थोनुं ज्ञान करावीने, तेमां सर्वोत्कृष्ट महिमावंत
आत्मतत्त्वनो अगाध महिमा समजावीने, तेनुं स्वाश्रित
वेदन करावनारुं ने पराश्रित दुःखभावो छोडावनारुं
हितशासन, –ते आपनुं शासन छे, ते आपनो वीरमार्ग छे..
वीर मुमुक्षुओ आजे पण आपना ए मार्गे चाली रह्या छे.
मुमुक्षुओना अंतरमां आपनो मार्ग शोभी रह्यो छे.
प्रभो! थोडा दिवसमां आपना निर्वाणगमननुं
रप०० मुं वर्ष बेसशे, ने सम्यकत्वादि चैतन्यदीवडावडे अमे
आपना निर्वाणनो मंगल उत्सव उजवीशुं.
(–ब्र. ह. जैन)