Atmadharma magazine - Ank 360
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : आसो र४९९ :
महावीर भगवाने प्रसिद्ध करेलो
मार्ग ते मार्गमां मोक्षना साधक जीवोनुं सुंदर वर्णन
महावीरभगवानना निर्वाणनुं अढीहजारमुं वर्ष दोडतुं
नजीक आवी रह्युं छे त्यारे महावीरभगवाने प्रसिद्ध करेल
मुक्तिनोमार्ग बतावतुं आ प्रवचन सौने गमशे. भगवान
महावीरे कहेला आत्माना सत्य स्वरूपने जाणीने
निर्वाणमार्गनी साधना करवी ते ज भगवानना मोक्षनो साचो
महोत्सव छे. भगवाने कहेला मार्गने जाण्या वगर मोक्षनो
साचो उत्सव थई शके नहि. भगवान कहे छे: हे भव्य!
परभावोथी भिन्न आनंदस्वरूप आत्मा जगतमां प्रसिद्ध छे..
आवा जगप्रसिद्ध सत्यने तुं जाण.. तने प्रसन्नता थशे..
आनंद थशे.
[नियमसार गाथा ४प–४६]

मुमुक्षुजीवे नक्की कर्युं छे के हुं ज्ञानतत्त्व छुं. मारुं ज्ञान आकुळता वगरनुं, स्वयं
आनंदरसमां लीन छे. अहा, आवा ज्ञानतत्त्वनी अनुभूति थई त्यां जगतमां कोई पण
पदार्थ तेने अनुकूळ के प्रतिकूळ छे ज क््यां? आवो अनुकूळ संयोग होय तो ज्ञानमां हर्ष
थाय, ने प्रतिकूळ संयोग होय तो ज्ञानमां खेद थाय–एवुं ज्ञानमां नथी. संयोगथी पार,
अने हरख–शोकथी पण पार एवुं ज्ञानस्वरूप प्राप्त करीने सहज ज्ञानचेतनापणे वर्तता
धर्मात्मा मुक्त ज छे. –मोक्षना साधक जीवो आवा होय छे.
बहारना पदार्थने जाणतां, ज्ञानना महिमाने भूलीने ते बहारना पदार्थप्रत्ये
अज्ञानीने उल्लास आवी जाय छे, तथा तेना रागमां तेने ‘मजा’ लागे छे– पण एमां
तो दुःख ज छे. ज्ञानने भूलीने आवा दुःखवेदनमां जीवे अनंतकाळ गाळ्‌यो; पण