Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ९ :
भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवना मूळ सुत्रोमां त्रण ठेकाणे खास वजन छे–
(१)
‘सत्यं ण याणए किचि’ एटले के शास्त्र वगेरे कांई जाणतां नथी.
–एटले तेनामां पूरेपूरुं अचेतनपणुं बताव्युं.
(२) ‘अण्णं णाणं’ एटले के ते शास्त्र वगेरे अचेतनथी ज्ञान जुदुं छे. शास्त्रो
वगेरे कांई जाणतां नथी, तेनी सामे ‘आत्मामां ज्ञानपूरेपूरुं छे.’ एम आव्युं. आत्मामां
ज्ञान पूरेपूरुं छे अने श्रुत वगेरेमां ज्ञान जरा पण नथी–आम अस्ति–नास्तिथी पूरो
ज्ञानस्वभाव बताव्यो छे.
(३) ‘जिणा विंति’ एटले के जिनदेवो एम जाणे छे अथवा जिनदेवो एम कहे
छे. गाथाए–गाथाए ‘जिणा विंति’ एम कहीने सर्वज्ञ भगवाननी साक्षी आपी छे.
अहो, कोई अपूर्व योगे आ समयसार शास्त्र रचायुं छे. गाथाए–गाथाए
अचिंत्य भावो भर्या छे; एकेक गाथाए परिपूर्ण आत्मस्वभाव बतावी दे छे.
आत्मा पोते ज्ञान छे ने श्रुतना शब्दो वगेरे अचेतन छे; आत्मामां ज्ञान
परिपूर्ण छे ने श्रुत वगेरेमां किंचित् ज्ञान नथी. श्रुतमां ज्ञान नथी अने ज्ञानमां श्रुत
नथी; तो हे भाई, तारा ज्ञानमां श्रुत तने शुं मदद करशे? अने तारो आत्मा ज्ञानथी
पूरो छे तो तारुं ज्ञान परनी शुं आशा राखशे? माटे ज्ञानने परनुं जराय अवलंबन
नथी. पोताना आत्मस्वभावनुं ज अवलंबन छे.
आ रीते आत्मानो परिपूर्ण स्वाश्रित ज्ञानस्वभाव आचार्यभगवाने आ पंदर
गाथाओमां बताव्यो छे.
जेने पोताना आत्मानुं हित करवुं छे–कल्याण करवुं छे तेणे शुं करवुं जोईए?
तेनो आ अधिकार चाले छे. प्रथम तो, आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ज्ञान अने आनंद ज
तेनो स्वभाव छे अने परथी तेम ज विकारथी ते जुदो छे,–एवा आत्मानी ज्यां सुधी
श्रद्धा न थाय त्यां सुधी शरीर–पैसा–स्त्री–पुत्र वगेरेमांथी हितबुद्धि टळे नहि; अने ज्यां
सुधी परमां हितबुद्धि के लाभ–अलाभनी बुद्धि टळे नहि त्यां सुधी स्वभावने
ओखळवानो अने राग–द्वेष टाळीने तेमां ठरवानो सत्य पुरुषार्थ करे नहि. माटे पोतानुं
हित करवाना ईच्छक जीवोए, आत्मानुं स्वरूप शुं छे? तेने कोनी साथे एकता छे ने
कोनाथी जुदाई छे? ते जाणवुं जोईए.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ते ज्ञान–सुख वगेरे साथे एकमेक छे, अने शरीर–पैसा