परथी जुदो छे एम कहेतां ज आत्मा पोताना स्वभावथी परिपूर्ण, स्वाधीन अने
परना आश्रय वगरनो निरालंबी सिद्ध थाय छे. आवा आत्माने जाणवो–मानवो ते ज
हितनो उपाय छे, ते ज कल्याण छे, ते ज धर्म छे, ते ज मंगल छे.
आनंद माटे कोई पर चीजनी जरूर नथी. आ प्रमाणे पोताना ज्ञानानंदस्वभावी
आत्मानो स्वीकार कर्या वगर कोई जीव धर्म करी शके नहि. आ आत्मस्वभाव
आबाळगोपाळ सर्वे जीवोने समजाय तेवो छे; दरेक जीवोए सुख माटे आवो
आत्मस्वभाव ज समजवानो छे. अहीं आचार्यदेव ते स्वभाव समजावे छे.
भगवाननी दिव्यवाणी, गुरुओनी वाणी के सूत्रोना शब्दो ते बधा द्रव्यश्रुत छे; तेना
आधारे आ आत्मानुं ज्ञान थतुं नथी. साक्षात् सर्वज्ञभगवान, गुरु के शास्त्रना लक्षे
रागमां अटकीने जे ज्ञान थाय ते पण द्रव्यश्रुत जेवुं छे. देव अने गुरुना आत्मानुं ज्ञान
तेमनामां छे, परंतु आ आत्मानुं ज्ञान तेमनामां नथी. जीव पोताना स्वभाव तरफ
वळीने ज्यारे साचुं समजे छे त्यारे द्रव्यश्रुतने निमित्त कहेवाय छे; पण देव–गुरु–
शास्त्रना रागथी आत्मस्वभाव समजातो नथी. देव–गुरुनी वाणीथी तेमज शास्त्रोथी
आ आत्मा जुदो छे. द्रव्यश्रुत तो अचेतन छे, तेमां कांई ज्ञान रहेलुं नथी, माटे ते
द्रव्यश्रुत पोते कांई जाणतुं नथी, ने द्रव्यश्रुतना लक्षे आत्मा समजातो नथी. आत्मा
पोते ज्ञानस्वभावी छे, ते ज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी ज आत्मा जणाय छे.
जाणवानो पोतानो ज स्वभाव छे.
रागथी जुदो पडीने, वर्तमान ज्ञानने अंदर रागरहित त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव तरफ वाळे
तो पोतानो आत्मस्वभाव जणाय. वर्तमान ज्ञानपर्यायने पर तरफ रागमां एकाग्र करे
तो अधर्म थाय छे, ने पोताना त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव तरफ वाळीने त्यां एकाग्र करे तो
धर्म थाय छे. ज्ञानस्वभावना आधारे जे ज्ञान थाय ते सम्यग्ज्ञान छे. पर द्रव्यो आ