भेदज्ञान कराव्युं छे.!
वीतरागता थतां जे केवळज्ञान थयुं ते सर्वे पदार्थोने एकसाथे जाणे छे अने तेमनी
वाणी अक्रमरूप, निरक्षरी अने एक समयमां पूरुं रहस्य कहेनारी होय छे, तेथी तेने
दिव्यध्वनि कहेवाय छे.
समजे तेटलुं तेने निमित्त कहेवाय छे. कोई जीव बार अंग समजे तो तेने माटे बार
अंगमां ते वाणीने निमित्त कहेवाय छे. कोई जीव करणानुयोगनुं ज्ञान करे तो ते वखते
तेने ते वाणी करणानुयोगना ज्ञानमां निमित्त कहेवाय, छे, अने ते ज वखते बीजो जीव
द्रव्यानुयोगनुं ज्ञान करतो होय तो तेने ते वाणी द्रव्यानुयोगना ज्ञानमां निमित्त
कहेवाय छे. अहो, आमां ज्ञाननी स्वाधीनता सिद्ध थाय छे. जे जीव पोताना
अंतरस्वभावना आधारे जेटलो श्रद्धा–ज्ञाननो विकास करे तेटलो दिव्यध्वनिमां
निमित्तपणानो आरोप आवे छे. माटे अहीं भगवान आचार्यदेव कहे छे के ज्ञान अने
द्रव्यश्रुत जुदां छे. वाणी अने शास्त्रो तो अजीव छे, अजीवना आधारे कदी ज्ञान होय
नहि. जो वाणीथी ज्ञान थतुं होय तो अजीववाणी कर्ता बने अने ज्ञान तेनुं कार्य ठरे.
अजीवनुं कार्य तो अजीव होय, एटले ज्ञान पोते अजीव ठरे! जे जीव परवस्तुना
आधारे पोतानुं ज्ञान माने छे ते जीवनुं मिथ्याज्ञान छे, तेने अहीं अचेतन कह्युं छे.
पोताना चेतनस्वभावने ते जाणतो नथी.
कहेला द्रव्य–गुण–पर्याय, निश्चय–व्यवहार, उपादान–निमित्त, नव तत्त्वो वगेरे संबंधी
ज्ञाननो उघाड मात्र शास्त्रोना लक्षे थाय, अने शब्दोथी तथा रागथी जुदो पडीने ज्ञान–
स्वभावनुं लक्ष न करे तो ते ज्ञानना उघाडने पण द्रव्यश्रुतमां गणीने अचेतन जेवो
कह्यो छे. शास्त्र वगेरे परद्रव्यो, तेना लक्षे थतो मंद कषाय अने तेना लक्षे कार्य करतो
वर्तमान पूरतो ज्ञाननो उघाड ते बधानो आश्रय छोडीने–तेनी साथेनी एकता छोडीने,
–त्रिकाळी