Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 53

background image
: १४ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
अनादिकाळथी जे मिथ्यात्वरूपी झेर चड्युं छे तेने उतारी नांखवा माटे, परम अमृतना
ईन्जेक्शन जेवी छे. जो एकवार पण आत्मा एवुं ईन्जेक्शन ल्ये तो तेने जन्म–
मरणनो रोग नाश थईने सिद्धदशा थया वगर रहे नहि. आत्मा अने विश्वना दरेक
पदार्थ स्वतंत्र छे, परिपूर्ण छे, निरावलंबन छे–आवो सम्यक्बोध ते तो परम अमृत छे
के झेर?? एवुं परम अमृत पण जे जीवने ‘झेरना ईन्जेक्शन’ जेवुं लागे छे ते जीवने
तेना मिथ्यात्व भावनुं जोर ज तेम पोकारी रह्युं छे! आ तो निजकल्याण करवा माटेना
अने मिथ्यात्वरूपी झेर दूर करवा माटेना अफर अमृतनां ईन्जेक्शन छे. पोताना
परिपूर्ण स्वभावनो विश्वास करे तो सम्यग्दर्शन प्रगटे एटले के धर्मनी पहेलामां पहेली
शरूआत थाय. ते सम्यग्दर्शन पोते चैतन्यअमृतथी भरेलुं छे, ने अमृत एटले के
मरणरहित एवा मोक्षपदनुं ते कारण छे.
आत्मस्वभावनो आश्रय करवो ते प्रयोजन छे
आत्मस्वभाव समजवामां, तेम ज समज्या पहेलांं अने समज्या पछी पण
सत्श्रुत निमित्तरूप होय छे, तेनो अहीं निषेध नथी. पण ते सत् निमित्तो एम कहे छे के
तुं तारा ज्ञानस्वभावनो आश्रय कर, ने परनो आश्रय छोड. केमके ज्ञान साथे तुं तन्मय
छो ने परथी तारी भिन्नता छे. जो निमित्तोनो आश्रय छोडीने पोताना स्वभावनो
आश्रय करे तो ज जीवने सम्यग्ज्ञान थाय छे, अने ए रीते स्वाश्रये सम्यग्ज्ञान प्रगट
करे तो ज द्रव्यश्रुतने तेनुं निमित्त खरेखर कहेवाय, अने तेना द्रव्यश्रुतना ज्ञानने
व्यवहारज्ञान कहेवाय छे. ए रीते अहीं निमित्तनो–व्यवहारनो आश्रय छोडीने
स्वभावनो आश्रय करवो ते प्रयोजन छे. ते ज धर्मनो रस्तो छे.
प्रश्न:–जो श्रुत–शास्त्र ते ज्ञाननुं कारण नथी, तो ज्ञानीओ पण आखो दिवस
समयसार–प्रवचनसार आदि शास्त्रो हाथमां राखीने केम वांचे छे?
उत्तर:–पहेलांं ए समजो के आत्मा शुं? ज्ञान शुं? शास्त्र शुं? ने हाथ शुं? हाथ
अने शास्त्र ते तो बन्ने अचेतन छे, आत्माथी जुदा छे, तेनी क्रिया तो कोई आत्मा
करतो नथी. ज्ञानीने स्वाध्याय वगेरेनो विकल्प थयो अने ते वखते ज्ञानमां ते प्रकारना
ज्ञेयोने ज जाणवानी लायकात हती तेथी ज्ञान थाय छे, ने ते वखते निमित्तरूपे
समयसारादि वीतरागी शास्त्र तेना पोताना कारणे स्वयं होय छे. त्यां ज्ञानीए तो
आत्मस्वभावना आश्रये ज्ञान ज कर्युं छे; ज्ञानपर्याय साथे ज तेने तन्मयता छे, बीजा
कोई साथे तेने तन्मयता नथी. हाथनी, शास्त्रनी के रागनी क्रिया पण तेणे करी नथी.
शास्त्रना कारणे ज्ञान थतुं नथी, अने जीवना विकल्पना कारणे