Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : १५ :
शास्त्र आव्युं नथी. ज्ञाननुं कारण तो पोतानो ज्ञानस्वभाव होय, के अचेतन वस्तु
होय? जेने पोताना ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा नथी अने अचेतन–श्रुतना कारणे पोतानुं
ज्ञान माने छे, तेने सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. आ भगवान आत्मा पोते ज्ञानस्वरूप छे.
सर्वज्ञ वीतरागदेवनी साक्षात् वाणी ते ज्ञाननुं असाधारण–सर्वोत्कृष्ट निमित्त छे पण ते
अचेतन छे, तेना आश्रये–तेना कारणे पण आत्माने किंचित् ज्ञान थतुं नथी, तो अन्य
निमित्तोनी तो शुं वात!
कोई एम कहे के–पहेलांं तो वाणी वगेरे निमित्तना लक्षे आत्मा आगळ वधे
ने? तो तेने कहे छे के भाई, वाणीना लक्षे बहु तो पापभाव टाळीने पुण्यभाव थाय,
पण ते कांई आगळ वध्यो कहेवाय नहि. केमके शुभभाव सुधी तो जीव अनंतवार
आवी चूक्यो छे. शुभ–अशुभथी पार आत्मानुं भेदज्ञान करीने ज्ञानस्वभावमां आवे
तो ज आगळ वध्यो कहेवाय. निमित्तना लक्षे कदी पण भेदज्ञान थाय नहि. पोताना
ज्ञानस्वभावना लक्षे शरूआत करे तो ज आगळ वधे ने भेदज्ञानना बळे पूर्णता थाय.
आचार्यदेवना कथनमां गर्भितपणे आवी जता नव तत्त्वो
श्री आचार्यदेवनी घणी गंभीर शैलि छे; एकेक सूत्रनो जेटलो विस्तार करवो
होय तेटलो थई शके छे. ‘श्रुत ते ज्ञान नथी’ एम कहेतां तेमां नवे तत्त्वो गर्भितपणे
आवी जाय छे.
(१) पोते ज्ञानमय जीवतत्त्व चेतन छे.
(२) पोताथी भिन्न एवां द्रव्यश्रुत ते अचेतन छे–अजीवतत्त्व छे.
(३) पोतानुं लक्ष चूकीने ते अजीव तरफ (–वाणी तरफ) लक्ष करतां शुभराग थाय
छे ते पुण्यतत्त्व छे.
(४) विषय–कषाय तरफनो अशुभभाव ते पापतत्त्व छे.
(५) परना लक्षे थतो शुभ–अशुभ विकार ते आस्रवतत्त्व छे.
(६) ते विकार भाववडे कर्मनुं बंधन थाय छे, ते बंधतत्त्व छे.
(७–८) वाणी अने आत्माने भिन्न जाणीने पोताना ज्ञानस्वभावनो अनुभव
करतां सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे ते संवर–निर्जरातत्त्व छे. अने
(९) आत्मस्वभावमां लीन थतां रागादि टळीने ज्ञाननी पूर्णता थाय छे ते मोक्षतत्त्व छे.