होय? जेने पोताना ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा नथी अने अचेतन–श्रुतना कारणे पोतानुं
ज्ञान माने छे, तेने सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. आ भगवान आत्मा पोते ज्ञानस्वरूप छे.
सर्वज्ञ वीतरागदेवनी साक्षात् वाणी ते ज्ञाननुं असाधारण–सर्वोत्कृष्ट निमित्त छे पण ते
अचेतन छे, तेना आश्रये–तेना कारणे पण आत्माने किंचित् ज्ञान थतुं नथी, तो अन्य
निमित्तोनी तो शुं वात!
पण ते कांई आगळ वध्यो कहेवाय नहि. केमके शुभभाव सुधी तो जीव अनंतवार
आवी चूक्यो छे. शुभ–अशुभथी पार आत्मानुं भेदज्ञान करीने ज्ञानस्वभावमां आवे
तो ज आगळ वध्यो कहेवाय. निमित्तना लक्षे कदी पण भेदज्ञान थाय नहि. पोताना
ज्ञानस्वभावना लक्षे शरूआत करे तो ज आगळ वधे ने भेदज्ञानना बळे पूर्णता थाय.
आवी जाय छे.
(१) पोते ज्ञानमय जीवतत्त्व चेतन छे.
(२) पोताथी भिन्न एवां द्रव्यश्रुत ते अचेतन छे–अजीवतत्त्व छे.
(३) पोतानुं लक्ष चूकीने ते अजीव तरफ (–वाणी तरफ) लक्ष करतां शुभराग थाय
(५) परना लक्षे थतो शुभ–अशुभ विकार ते आस्रवतत्त्व छे.
(६) ते विकार भाववडे कर्मनुं बंधन थाय छे, ते बंधतत्त्व छे.
(७–८) वाणी अने आत्माने भिन्न जाणीने पोताना ज्ञानस्वभावनो अनुभव