Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
हुं ज्ञानस्वभावी आत्मा, वाणी वगेरे अचेतनथी जुदो छुं–एवो जेणे निर्णय
कर्यो ते पोताना ज्ञानने परनुं अवलंबन माने नहि. तेने पोताना अंतरस्वभावना
आश्रये आत्मानुं ज्ञान प्रगटे छे ने तेमां एकाग्रताथी क्षणे–क्षणे शुद्धिनी वृद्धि थती
जाय छे.
‘मारे मोक्ष करवो छे अथवा मारे धर्म करवो छे’ एम अंतरमां गोख्या करे तेथी
कांई धर्म थाय नहि. मोक्ष केम थाय ते बतावनारी संतोनी वाणीना लक्षे रोकाय तोपण
मोक्ष न थाय. मारी वर्तमान पर्यायमांथी विकार टाळीने मोक्षदशा करवी छे–एम पर्याय
उपर जोया करे तोपण मोक्ष न थाय–धर्म न थाय, पण ए वाणी अने विकारथी जुदो
ज्ञानस्वभाव ते हुं–एम समजी, ते आत्मस्वभावनो आश्रय करतां निर्मळदशा प्रगटे
छे, अने पराश्रये थनारा एवा मिथ्यात्व–रागादिभावो टळे छे. आत्मा ज्ञान–आनंदनुं
बिंब छे, तेनामां पूरुं ज्ञानसामर्थ्य छे, ते सामर्थ्यनो विश्वास करीने तेनो अनुभव
करतां पर्यायमां पूरुं ज्ञानसामर्थ्य प्रगट थाय छे. आ ज मुक्तिनो उपाय छे.
जे ज्ञान पोते अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वभावमां तन्मय थईने परिणम्युं ते पोते
सम्यग्दर्शन छे. ते पर्याय पोते आत्मा छे; आत्मा पोते पोतानी पर्यायमां तन्मय थईने
परिणम्यो छे. जेम जड–चेतन बे वस्तु जुदी छे तेम कांई द्रव्य–पर्याय जुदां नथी, अनन्य
छे. अहीं तो कहे छे के आत्मानी बधी पर्यायोमां ज्ञान तन्मय छे; अचेतनना समस्त
गुण–पर्यायोथी ज्ञान अत्यंत जुदुं छे, ने चेतनना समस्त गुण–पर्यायोमां ज्ञान
तन्मयपणे रहेलुं छे. अहो, आवा ज्ञानस्वभावी आत्मानुं ग्रहण (एटले के तेने
जाणीने तेनां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र) जेणे कर्या ते जीव कृतकृत्य स्वसमय छे. जिज्ञासु
जीवोने कुगुरुनो संग छोडीने, सत्पुरुषनी वाणीनुं श्रवण करवानो भाव आवे, पण
‘मारुं ज्ञान वाणीना कारणे नथी, वाणीना लक्षे पण मारुं ज्ञान नथी, अंतरमां
ज्ञानस्वभावमांथी ज मारुं ज्ञान आवे छे’ एम नक्की करीने जो स्वभाव तरफ वळे तो
ज सम्यग्ज्ञान थाय छे. अने तेणे ज द्रव्यश्रुतनुं साचुं श्रवण कर्युं छे; द्रव्यश्रुत जे कहेवा
मांगे छे ते तेणे लक्षमां लीधुं छे.
श्री कुंदकुंदप्रभु पोते महाविदेहक्षेत्रमां जईने सर्वज्ञदेव श्री सीमंधरभगवाननी
दिव्यवाणीनुं आठ दिवस श्रवण करी आव्या हता; तेओश्री आ गाथामां कहे छे के
भगवाननी साक्षात् दिव्यवाणी अचेतन छे, तेमां आत्मानुं ज्ञान नथी. भगवाननी
वाणी एम ज जणावे छे के ज्ञाननी उत्पत्ति वाणीना आश्रये नथी; आत्मा पोते
ज्ञानस्वरूप छे, तेना ज आश्रये तेनुं ज्ञान छे.