Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
भगवान! तारो मुक्तिमार्ग अमे जाण्यो छे.
अमे पण ते मार्गे चाल्या आवीए छीए


आचार्यदेव कहे छे के देहना आश्रये मोक्षमार्ग नथी, आत्माना आश्रये
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारत्रि ते ज मोक्षमार्ग छे; भगवंतोए आवो मोक्षमार्ग सेव्यो हतो
एम अमे जाणीए छीए, ने अमे पण आवो ज मोक्षमार्ग सेवीए छीए.
अनंता तीर्थंकरो पूर्वे थया. अत्यारे विदेहमां तीर्थंकरो बिराजे छे ने अनंता
तीर्थंकरो भविष्यमां थशे; ते बधाय अरिहंतो केवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सेवीने
मोक्ष पाम्या? ते अमे अमारा स्वसंवेदनज्ञानथी जोईए छीए. स्वद्रव्याश्रित जे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे ते ज मोक्षमार्गपणे जोवामां आवे छे. अमे ते मार्ग जोयो
छे अने ते मार्गनी सेवना अमे करीए छीए.
अहीं क्षेत्रअपेक्षाए तीर्थंकरनो विरह छे. पण भावमां विरह नथी, तीर्थंकरोए
जे भाव सेव्यो (जे रत्नत्रय सेव्या) तेनो अमने विरह नथी. तीर्थंकरोए केवा
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सेव्या ते अमे अमारा स्वसंवेदनभावथी बराबर जाणीए
छीए. पूर्वे कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे महान संतो थया तेओ वीतराग मोक्षमार्गने सेवनारा
हता–एम तेमनो निर्णय अत्यारे पण तेमनी वाणी उपरथी धर्मात्मा करी ल्ये छे.
अहा, जुओ तो खरा, धर्मात्मानी ताकात! पोताना स्वसंवेदनना गजथी
अनंता तीर्थंकरोनुं माप, तेमज हजारो वर्ष पहेलांं थयेला वीतरागी संतोनुं माप करी
लीधुं छे. कोई पण भगवंतो शरीरनी के रागनी सेवना करीने मोक्ष नथी पाम्या पण
अंदरमां ज्ञाननुं सेवन करीने सर्वे भगवंतो मोक्ष पाम्या छे. धर्मी प्रमोदथी कहे छे के
अहो! प्रभो! आपनो मुक्तिमार्ग अमे जाण्यो छे, ने अमे पण एवा ज मोक्षमार्गने
सेवीए छीए....आपना पगले–पगले मोक्षमां आवी रह्या छीए.–आम धर्मी जीव
निःशंक मोक्षमार्गने जाणे छे.
धर्मी पोते तीर्थंकरोना मार्गने सेवीने तेनो निर्णय करे छे. सम्यग्दर्शन–