आचार्यदेव कहे छे के देहना आश्रये मोक्षमार्ग नथी, आत्माना आश्रये
एम अमे जाणीए छीए, ने अमे पण आवो ज मोक्षमार्ग सेवीए छीए.
मोक्ष पाम्या? ते अमे अमारा स्वसंवेदनज्ञानथी जोईए छीए. स्वद्रव्याश्रित जे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे ते ज मोक्षमार्गपणे जोवामां आवे छे. अमे ते मार्ग जोयो
छे अने ते मार्गनी सेवना अमे करीए छीए.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सेव्या ते अमे अमारा स्वसंवेदनभावथी बराबर जाणीए
छीए. पूर्वे कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे महान संतो थया तेओ वीतराग मोक्षमार्गने सेवनारा
हता–एम तेमनो निर्णय अत्यारे पण तेमनी वाणी उपरथी धर्मात्मा करी ल्ये छे.
लीधुं छे. कोई पण भगवंतो शरीरनी के रागनी सेवना करीने मोक्ष नथी पाम्या पण
अंदरमां ज्ञाननुं सेवन करीने सर्वे भगवंतो मोक्ष पाम्या छे. धर्मी प्रमोदथी कहे छे के
अहो! प्रभो! आपनो मुक्तिमार्ग अमे जाण्यो छे, ने अमे पण एवा ज मोक्षमार्गने
सेवीए छीए....आपना पगले–पगले मोक्षमां आवी रह्या छीए.–आम धर्मी जीव
निःशंक मोक्षमार्गने जाणे छे.