Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : १९ :
ज्ञान–चारित्रना भावरूप मोक्षमार्ग छे, तेनुं सेवन करीने तीर्थंकरो मोक्ष पाम्या छे; ते
पर्याय छे. जेणे अंदरनी स्वानुभूति करी तेणे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं सेवन कर्युं; ते
अनुभूति पोते आत्मा ज छे, आत्मा तेनाथी भिन्न नथी. आवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप आत्मानुं सेवन, तेमां शुभराग नथी, तो पछी शरीरनी तो वात ज केवी?
अहो, अमारा धर्मपिता, जेमना पंथे अमे जई रह्या छीए तेमणे तो ज्ञानमय
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं सेवन कर्युं हतुं, कांई शरीरना द्रव्यलिंगने के शुभरागने
तेमणे मोक्षमार्ग तरीके सेव्यो न हतो; माटे ज्ञानमय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज
एक मोक्षमार्ग छे, शुभराग के शरीरना आश्रये मोक्षमार्ग नथी,–एम सूत्रनी अनुमति
छे. माटे बीजी बधी चिंता छोडीने एक ज्ञाननुं सेवन कर, ज्ञानना सेवन वडे
मोक्षमार्गमां तारा आत्माने जोड.
तीर्थंकर–अरिहंतोनो दाखलो आपीने रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग आचार्यदेवे प्रसिद्ध
कर्यो छे. आवो मार्ग बतावीने आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! तुं तारा आत्माने पण
आवा मोक्षमार्गमां स्थाप!
तुं स्थाप निजने मोक्षपंथे, ध्या, अनुभव तेहने,
तेमां ज नित्य विहार कर, नहि विहर परद्रव्यो विशे.
जुओ तो खरा, अरिहंतोनी ओळखाण! अरिहंतो ज्यारे साधकपणे वर्तता हता
ते वखते केवुं वेदन करता हता, ते अमने अमारा साधकभावमां निःसंदेह जणाय छे.
बधाय भगवंतोए मोक्ष माटे केवुं काम कर्युं हतुं? के रागरहित ज्ञानमय रत्नत्रयने
सेव्या हता. बधाय भगवंतोए सेवेलो आ ज एक मोक्षमार्ग छे, बीजो मार्ग मोक्ष माटे
छे ज नहीं.
अर्हंत सौ कर्मो तणो करी नाश ए ज विधि वडे,
उपदेश पण एम ज करी निर्वृत्त थया; नमुं तेमने.
–आम निर्णय करीने धर्मी पण ते ज मार्गने सेवे छे. मोक्ष जनार जीवने निर्ग्रंथ
मुनिलिंग ज होय छे, बीजुं द्रव्यलिंग होतुं नथी–ए खरूं, पण–
–पण लिंग मुक्तिमार्ग नहि, अर्हंत निर्मम देहतां,
बस लिंग छोडी ज्ञान ने चारित्र दर्शन सेवता.