चारित्र–दर्शन–ज्ञानने बस मोक्षमार्ग जिनो कहे.
भगवंतोए तो शरीरने मोक्षमार्ग नहीं जाणता थका तेनुं ममत्व छोड्युं ने रत्नत्रयना
सेवनवडे मोक्ष पाम्या. तुं पण तारा आत्माने आवा मोक्षमार्गमां जोड.–आ सिद्ध
भगवानना समाचार छे.
मोक्षमार्ग छे, परंतु एनाथी भिन्न एवुं द्रव्यलिंग (–नग्नशरीर के महाव्रतादिना
विकल्पो) ते कोई मोक्षमार्ग नथी.
उतारीने कहे छे के अहो! बधाय भगवान अर्हंतदेवोए आवा दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनी ज मोक्षमार्गपणे उपासना करी छे–एम जोवामां आवे छे.
उपासनाथी मोक्षमार्ग साधी रह्या छीए, ने बधाय अर्हंत भगवंतोए पण आ ज रीते
मोक्षमार्गनी उपासना करी हती एम निःशंकपणे अमारा निर्णयमां आवे छे.
लिंगथी ज मोक्ष पामत!–परंतु अर्हंतभगवंतोए तो देहादिथी ने रागादिथी विमुख
थईने, शुद्धज्ञानमय चिदानंदतत्त्वनी सन्मुखता वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज उपासना
करी; माटे ए नक्की थयुं के देहमय लिंग ते मोक्षमार्ग नथी, राग पण मोक्षमार्ग नथी,
परमार्थे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना ते ज मोक्षमार्ग छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
उपासना कई रीते थाय? के शुद्ध ज्ञानमय आत्माना सेवनथी ज ते रत्नत्रयरूप
मोक्षमार्गनी उपासना थाय छे.