Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : कारतक : २५००
मुनिलिंगने गृहीलिंग–ए लिंगो न मुक्तिमार्ग छे,
चारित्र–दर्शन–ज्ञानने बस मोक्षमार्ग जिनो कहे.
माटे हे जीव! तुं तारा आत्माने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमावीने
तन्मय परिणामवाळो था. अरिहंतोने काया छे पण कायानी माया नथी.–‘कायानी
विसारी माया, स्वरूपे शमाया एवा, निर्ग्रंथनो पंथ भवअंतनो उपाय छे.’ जे
शरीरने (द्रव्यलिंगने) मोक्षनुं कारण माने तेने शरीरनी ममता छूटे ज नहीं.
भगवंतोए तो शरीरने मोक्षमार्ग नहीं जाणता थका तेनुं ममत्व छोड्युं ने रत्नत्रयना
सेवनवडे मोक्ष पाम्या. तुं पण तारा आत्माने आवा मोक्षमार्गमां जोड.–आ सिद्ध
भगवानना समाचार छे.
शुद्धज्ञानमय आत्मा छे, ते अमूर्तिक छे; आवा शुद्धज्ञानमय आत्मामां देह के
रागादि भावो नथी; देहथी ने रागथी पार एवा शुद्धज्ञानमय आत्मानुं सेवन ते ज
मोक्षमार्ग छे, परंतु एनाथी भिन्न एवुं द्रव्यलिंग (–नग्नशरीर के महाव्रतादिना
विकल्पो) ते कोई मोक्षमार्ग नथी.
शुद्धज्ञानस्वभावनी सन्मुखताथी पोते आवा
मोक्षमार्गना उपासक थईने आचार्यदेव बधाय अर्हतदेवोने साक्षीपणे
उतारीने कहे छे के अहो! बधाय भगवान अर्हंतदेवोए आवा दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनी ज मोक्षमार्गपणे उपासना करी छे–एम जोवामां आवे छे.
अमे तो
देहादि द्रव्यलिंगनुं ममत्व छोडीने, शुद्धज्ञानना सेवन वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
उपासनाथी मोक्षमार्ग साधी रह्या छीए, ने बधाय अर्हंत भगवंतोए पण आ ज रीते
मोक्षमार्गनी उपासना करी हती एम निःशंकपणे अमारा निर्णयमां आवे छे.
जो देहमय लिंग के ते तरफना शुभविकल्पो ते मोक्षनुं कारण होय तो अर्हंत–
भगवंतो तेनुं ममत्व छोडीने दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना शा माटे करत? द्रव्य–
लिंगथी ज मोक्ष पामत!–परंतु अर्हंतभगवंतोए तो देहादिथी ने रागादिथी विमुख
थईने, शुद्धज्ञानमय चिदानंदतत्त्वनी सन्मुखता वडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज उपासना
करी; माटे ए नक्की थयुं के देहमय लिंग ते मोक्षमार्ग नथी, राग पण मोक्षमार्ग नथी,
परमार्थे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना ते ज मोक्षमार्ग छे. दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
उपासना कई रीते थाय? के शुद्ध ज्ञानमय आत्माना सेवनथी ज ते रत्नत्रयरूप
मोक्षमार्गनी उपासना थाय छे.