Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : २१ :
अहा! आचार्यदेवनी केटली निःशंकता! अंदर पोते तो निर्विकल्पअनुभवमां
झूलता झूलता आवा मोक्षमार्गने साधी रह्या छे, ने बेधडकपणे कहे छे के बधाय
भगवान अर्हंतदेवोने शुद्धज्ञानमयपणुं छे, ने तेओए द्रव्यलिंगना आश्रयभूत शरीरनुं
ममत्व छोडी दीधुं छे, एटले द्रव्यलिंगना त्यागवडे दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी मोक्षमार्गपणे
उपासना जोवामां आवे छे. बधाय तीर्थंकरोए मोक्षमार्ग आ एक ज रीते उपास्यो छे,
एम अमारा जोवामां आवे छे.
कोई कहे के “जोवामां आवे छे” एम कह्युं तो शुं आचार्यदेवे अर्हंतदेवोने नजरे
जोया छे? अत्यारे के कुंदकुंदाचार्यदेव हता त्यारे पण अहीं अर्हंतदेव तो न हता!
तो तेने अहीं कहे छे के हे भाई! आत्मामां स्वानुभव–प्रत्यक्षथी ज्यां साक्षात्
अनुभव थयो, त्यां निःसंदेह खातरी थई गई के बस, आवो ज मोक्षमार्ग त्रणेकाळे
होय. अने वळी कुंदकुंदाचार्यदेवने तो विदेहक्षेत्रमां साक्षात् तीर्थंकरभगवाननो भेटो पण
थयो हतो, आठ दिवस सुधी भगवान सीमंधर परमात्मानी सभामां दिव्यध्वनिनुं
साक्षात् श्रवण कर्युं हतुं, ज्यां अनेक केवळज्ञानी भगवंतो बिराजता हता, ज्यां
गणधरदेवो अने मुनिवरोनां टोळां आवा मोक्षमार्गने साधता हता,–तेमने नजरे
नीहाळीने, अने तेवो मोक्षमार्ग पोताना आत्मामां प्रगटावीने आचार्यदेव कहे छे के
भाई, मोक्षमार्ग तो आ शुद्ध ज्ञानमय आत्माना आश्रये रत्नत्रयनी उपासनाथी ज छे,
–एम अमारा जोवामां आवे छे, बीजो कोई मोक्षमार्ग अमारा जोवामां
आवतो नथी.
अहा! जेने साधकपणुं प्रगटाववुं होय तेने साधकपणुं केम प्रगटे तेनी
आ वात छे. मोक्षने साधवा माटे सुत्रनी अने संतोनी आज्ञा तो आम छे के तुं
तारा स्वद्रव्यनो आश्रय करीने तेमां ज विहर! तुं तारा आत्माने रत्नत्रयमां
जोड....तो तुं मोक्षमार्गमां आव्यो–एम सूत्रनी अने संतोनी संमति छे.
आत्मानो वीतरागी ज्ञानस्वभाव छे. ते वीतरागीस्वभावनी निर्विकल्प–
वीतरागी श्रद्धा, तेनुं वीतरागीज्ञान, ने तेमां वीतरागी लीनता,–एवा रत्नत्रयस्वरूप
मोक्षमार्ग छे.
आवा मोक्षमार्ग सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी. माटे जेणे साधकपणुं
प्रगटाववुं होय ने मोक्षने साधवो होय तेणे आत्माना आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–