: २२ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
चारित्ररूप तीर्थंनी उपासना करवी. द्रव्यलिंग तो शरीराश्रित होवाथी परद्रव्य छे, ते
कांई मोक्षनुं कारण नथी.
द्रव्यलिंगने शरीराश्रित कह्युं तेमां व्रत–महाव्रतना शुभविकल्पो पण समजी
लेवा, केमके ते पण परद्रव्यने ज आश्रित छे, तेथी ते मोक्षनुं कारण नथी.
मोक्षनुं कारण तो स्वद्रव्यने आश्रित ज होय; स्वद्रव्यने एटले के आत्माना
स्वभावने आश्रित एवा जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षमार्ग छे,–एम कहे
छे....
–‘कोण कहे छे?’ के भगवान जिनदेवो कहे छे. सर्वे जिनेन्द्रभगवंतोए
शुद्धज्ञानना आश्रये (एटले के शुद्ध आत्माना आश्रये) ज मोक्षमार्गनी आराधना करी;
ने ते जिनभगवंतोए बीजा मुमुक्षु श्रोताजनोने पण ए ज मोक्षमार्ग कह्यो.
गीरनार वगेरे मोक्षधामनी यात्रानो भाव कुंदकुंदआचार्य जेवा महा संतोने पण
आव्यो हतो, तेओ गीरनारजीतीर्थनी यात्राए पधार्या हता, एवो बहुमाननो विकल्प
धर्मीने आवे छे. श्रीमद् राजचंद्रजी पण दक्षिणदेशना पर्वतो नीहाळीने बहुमानथी कहे छे
के अहो! ए तरफना नग्र ऊंचा
अडोलवृत्तिथी उभेल पहाड नीरखी
स्वामी कार्तिकेयादि (मुनिओ)नी अडोल
वैराग्यमय दिगम्बरवृत्ति याद आवती
हती. ते स्वामी कार्तिकेयादिने नमस्कार.
जुओने! बाहुबली भगवान
केवा अडोल ऊभा छे! जाणे मोक्षने केम
साध्यो ते दर्शावी रह्या होय! ! एवो अद्भुत देखाव छे.
–आ रीते मोक्षमार्गना प्रेमीने तीर्थधाम प्रत्ये पण बहुमाननो भाव आवे छे.
रत्नत्रयरूपे परिणमेल जीवने पण ‘तीर्थ’ कहेवाय छे, केमके जेनाथी तराय ते तीर्थ छे;
रत्नत्रयरूप नौकावडे ते संसारने तरे छे माटे ते तीर्थ छे. अनुभवनी प्रीतिवाळा
मुमुक्षुजीवने आवा परमात्मा के धर्मात्मा प्रत्ये परम प्रीति ने बहुमान
आवे छे.