: कारतक : २५०० आत्मधर्म : २३ :
परंतु अंतरमां धर्मात्माने ते वखते भान छे के आ भाव परद्रव्याश्रित छे, ते मारा
मोक्षनुं साधन खरेखर नथी; जेटलो भाव मारा स्वद्रव्यने अवलंबे ते ज मोक्षनुं साधन छे.
अहीं कोई एक जीवनी वात नथी, आ तो महा सिद्धांत छे एटले बधाय जीवोने
माटे त्रणे काळनो अबाधित नियम छे. कोई पण क्षेत्रे ज्यारे जे कोई जीवने मोक्ष साधवो
होय ते आ नियमअनुसार ज मोक्षने साधी शके छे. ‘सम्यग्द्रर्शन–ज्ञान–चारित्राणि
मोक्षमागर्: ’ एम मोक्षशास्त्रनुं पहेलुं ज सूत्र छे, ते आखा जगतने त्रिकाळ लागु पडे छे.
अने तेना बीजडां आ समयसारमां भरेलां छे.
सर्वकर्मरहित पूर्ण शुद्ध आत्मपरिणाम ते मोक्ष छे; तो ते मोक्षनुं कारण पण तेवी
जातनुं ज होवुं जोईए, एटले के मोक्षना कारणरूप परिणाम पण कर्मरहित, शुद्ध होवा
जोईए. जे परिणामथी कर्म बंधाय ते परिणाम मोक्षनुं साधन नथी. आत्माना आश्रये
थता जे वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप परिणाम ते ज मोक्षनुं साधन छे. –ए नियम छे.
माटे हे भव्य! तारा आत्माने तुं आवा मोक्षमार्गमां जोड! ने बीजा भावोनुं
ममत्व छोड! स्वद्रव्यने आश्रित सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे मोक्षमार्ग तेमां ज तारा
आत्माने जोड–एम सूत्रनी अनुभूति छे.
अहा! जेने साधकपणुं प्रगटाववुं होय तेने साधकपणुं केम प्रगटे तेनी आ वात छे.
मोक्षने साधवा माटे सूत्रनी अने संतोनी आज्ञा तो आम छे के तुं तारा स्वद्रव्यनो
आश्रय करीने तेमां ज विहर! तुं तारा आत्माने स्वद्रव्यमां जोड.....तो तुं मोक्षमार्गमां
आव्यो–एम सूत्रनी अने संतोनी संमति छे.
[जुओ पानुं: ३१]
मेरे नियनोंमें प्रभु वसे
जेना हृदयमां भगवान बिराजे छे, जेनुं ज्ञान अंतर्मुख थयुं
छे. अंतरनी द्रष्टि जेने ऊघडी छे एवो भक्त भगवान प्रत्ये कहे छे के–
हे भगवान! आ बाह्य ईन्द्रियचक्षुथी आप मने भले न
देखाओ, पण अंतरमां खुलेला मारा मतिश्रुतज्ञाननां चक्षुथी आप दूर
नहि रही शको. मारा स्वसन्मुख अतीन्द्रिय ज्ञानचक्षुमां तो आप
साक्षात् बिराजी ज रह्या छो....आपना निःशंक श्रद्धा–ज्ञान वर्ते छे....
अंतरनयनो वडे हुं आपने देखी ज रह्यो छुं.
“मेरो प्रभु नहि दूर दीसन्तर, मोहिमें है मोहे दीसत नीके”