: २४ : आत्मधर्म : कारतक : २५००
वीरप्रभुनी परंपराथी आवेला
परमागमनुं तात्पर्य
सर्वज्ञपरंपरामां दिगंबर आचार्योए टकावेलो मोक्षमार्ग
आजे पण परमागममां प्रसिद्ध छे. महा भाग्ये आपणने पण ते
मार्ग गुरुदेवे आप्यो छे. परमागममंदिरनो महोत्सव नजीक आवी
रह्यो छे त्यारे वीरनाथनी परंपराना परमागममां कहेलो सत्य
मार्ग जाणीने मुमुक्षुओ आनंदित थशे.
(सूत्रप्राभृतना प्रवचनोमांथी).
अहो, सर्वज्ञनी परंपराथी आवेला वीतरागी–जिनसूत्र आजे महाभाग्ये
आपणने मळ्या छे; आवा जिनसूत्रमांथी परमार्थमार्ग शोधी शकाशे. सर्वज्ञे कहेलुं ने
वीतरागीसंतोए स्वानुभव करीने परंपरा टकावेलुं भावश्रुत, तेनो उपदेश आ
समयसारादि जिनागममां भर्यो छे; तेनाथी सूत्र अने अर्थ जाणीने, परमार्थमार्गनो
निश्चय करीने आजे पण भव्यजीवो मोक्षमार्गने पामे छे.
अरे, जेनी पासे सूत्र ज साचां नथी, जेनी परंपरा साची नथी, वीतरागी
संतोनी परंपरा तोडीने जे कल्पित मार्ग चाल्या ने कल्पित सूत्रो रचायां तेमां
मोक्षमार्गनो परमार्थ उपदेश नथी, एटले एवा मार्गमां के एवा शास्त्रमांथी परमार्थ
मोक्षमार्ग शोधी शकाय नहीं. भाई, तारा हित माटे तुं साचा मार्गनो निर्णय कर, अने
ते साचो मार्ग बतावनारा वीतराग सर्वज्ञ देव–गुरु–शास्त्रने ओळखीने तेनी
परंपरानो स्वीकार कर.
जुओ, महावीर भगवानना निर्वाणनुं २५०० (अढी हजार) मुं वर्ष बेठुं छे ने
आ महावीर भगवाननी परंपरानी वात आवी छे. भगवाननी परंपरामां थयेला