Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : २५ :
आचार्योए जे सूत्र अने अर्थ कह्या छे तेना द्वारा साचा मार्गने जाणीने भव्यजीवो
निर्वाणने साधे छे.–आवो सत्य मार्ग कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे दिगंबर संतोए टकावी
राख्यो छे, ते आजे पण चाली रह्यो छे.
जिनसूत्रमां कोईपण रीते रागादिकभावो मटाडवानुं प्रयोजन छे, अने राग–
रहित चिदानंदतत्त्वना अनुभवनुं तात्पर्य छे. आवा प्रयोजननी सिद्धि भगवाने कहेला
परमागमनी परंपरामां ज थाय छे. चैतन्यतत्त्व अने रागादितत्त्व बंने भिन्न छे–एवुं
भेदज्ञान करावीने रागने मटाडे छे,–ए रीते जीव परमागमनुं रहस्य जाणीने, मोक्षमार्ग
पामे छे.
भगवाने कहेला बधा परमागम तो आजे विद्यमान नथी तो परमार्थरूप
मोक्षमार्ग केम साधी शकाय? एवा प्रश्नना उत्तरमां कहे छे के, भगवानना कहेला
परमागमनो अंश आजे पण विद्यमान छे. भगवाने कहेला बधा परमागम आजे भले
विद्यमान न होय, परंतु तेना एक अंशमां पण मोक्षमार्ग बताववानुं सामर्थ्य छे. भले
शास्त्रो थोडा छे, पण ते वीतरागीसंतोनी परंपराथी आवेला छे, तेमां वीतरागदेवे
कहेलो मूळमार्ग जळवाई रह्यो छे. अहो, दिगंबर आचार्योए मार्ग टकावीने अथाग–
अपार उपकार कर्यो छे.
महावीरभगवाननी परंपराथी चाल्या आवेला परमागमनो अत्यंत महिमा
करतां षट्खंडागममां श्री वीरसेनस्वामी कहे छे के: मोक्षाभिलाषी भव्य जीवोए आवा
वीतरागी परमागमनो अभ्यास करवो जोईए. महावीर भगवान मोक्ष पधार्या पछी
६२ वर्ष सुधी तो आ भरतक्षेत्रमां केवळज्ञाननी धारा अखंड रही. पछी केवळज्ञाननो
तो विच्छेद थयो पण बार अंगधारी पांच श्रुतकेवळीभगवंतो थया, तेमना द्वारा
श्रुतज्ञाननी धारा १०० वर्ष सुधी अखंड चाली. पछी श्रुतज्ञान पण क्रमेक्रमे घटवा
मांड्युं.–तोपण, घटतां–घटतां तेनो एक अंश आजेय वीतरागी संतोना प्रतापे
आपणने प्राप्त थाय छे...ते पण अमृत छे. तेना अभ्यास माटे प्रेरणा करतां वीरसेन
स्वामी (षट्खंडागम पुस्तक ९, पानुं १३३–१३४ मां) कहे छे के–
“आ परमागम–ग्रंथ त्रिकाळविषयक समस्त पदार्थोनो विषय करनारा प्रत्यक्ष
अनंत केवळज्ञानना प्रभावथी प्रमाणीभूत होवाथी, अने वीतरागी आचार्योनी