प्रवचन परमागम–मंदिरमां थयुं हतुं; ते तथा आसो वद चोथना
मंगल दिवसनुं प्रवचन अहीं आप्युं छे. परमागम–मंदिरमां
प्रवचन करतां जैनदर्शनना अगाध महिमाने प्रसिद्ध करीने प्रमोद–
पूर्वक गुरुदेव कहे छे के–अहो, जैनदर्शन! अने तेमां पण
सम्यग्दर्शननो महिमा! एनी शी वात? ज्यां आत्मानो प्रेम थयो
त्यां आखा जगतना बधा पदार्थोमांथी एनो रस ऊडी जाय, ने
अंदर चैतन्यस्वरूपनो अतीन्द्रिय स्वाद आवे.
कर्यो छे. तीर्थंकर भगवंतो मुनिदशामां केवळज्ञान थया पहेलांं उपदेश देता नथी, मौन ज
रहे छे; केवळज्ञान थया पछी ज समवसरणमां प्रभुनो उपदेश नीकळे छे. पोतानुं काम
पूरुं करीने पछी प्रभुनो उपदेश नीकळ्यो. ते उपदेशने अनुसरीने संतोए जे वाणी रची
ते आ समयसारादि परमागम छे. तेमां सम्यग्दर्शननो प्रधान उपदेश छे.
निर्णय कर. जेमां मननो, रागनो के ईन्द्रियनो संबंध नथी एवा आत्मानी सन्मुख थईने