Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ३३ :
जिनमार्गमां वीतराग–चारित्र कर्तव्य छे
ते न थई शके तो ते मार्गनी श्रद्धा जरूर राखजे;
रागने मोक्षमार्ग मानीश नहि, कुमार्गनी श्रद्धा करीश नहीं.
आसो वद त्रीजना रोज पू. बेनश्रीना मंगल सुहस्ते
परमागममंदिरमां दरवाजा मुकवाना मंगलप्रसंगे गुरुदेवनुं
प्रवचन परमागम–मंदिरमां थयुं हतुं; ते तथा आसो वद चोथना
मंगल दिवसनुं प्रवचन अहीं आप्युं छे. परमागम–मंदिरमां
प्रवचन करतां जैनदर्शनना अगाध महिमाने प्रसिद्ध करीने प्रमोद–
पूर्वक गुरुदेव कहे छे के–अहो, जैनदर्शन! अने तेमां पण
सम्यग्दर्शननो महिमा! एनी शी वात? ज्यां आत्मानो प्रेम थयो
त्यां आखा जगतना बधा पदार्थोमांथी एनो रस ऊडी जाय, ने
अंदर चैतन्यस्वरूपनो अतीन्द्रिय स्वाद आवे.
[अष्टप्राभृत–दर्शनप्राभृत गाथा २१–२२]
आ सम्यग्दर्शननी वात जैनदर्शनमां आचार्यदेवे प्रसिद्ध करी छे. तीर्थंकरदेवे
केवळज्ञान प्रगट कर्या पछी जे उपदेश कर्यो तेने अनुसरीने ज वीतराग संतोए उपदेश
कर्यो छे. तीर्थंकर भगवंतो मुनिदशामां केवळज्ञान थया पहेलांं उपदेश देता नथी, मौन ज
रहे छे; केवळज्ञान थया पछी ज समवसरणमां प्रभुनो उपदेश नीकळे छे. पोतानुं काम
पूरुं करीने पछी प्रभुनो उपदेश नीकळ्‌यो. ते उपदेशने अनुसरीने संतोए जे वाणी रची
ते आ समयसारादि परमागम छे. तेमां सम्यग्दर्शननो प्रधान उपदेश छे.
हे जीव! तुं शुद्धभावथी आवा सम्यक्त्वने धारण कर. विकल्पथी नहि, रागथी
नहि, पण अंतर्मुख थईने, रागथी पार, विकल्पथी पार ज्ञानभाववडे तारा आत्मानो
निर्णय कर. जेमां मननो, रागनो के ईन्द्रियनो संबंध नथी एवा आत्मानी सन्मुख थईने