: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ३ :
मिथ्यात्वना अंधारानो नाश करीने चैतन्यनो जे सम्यक्त्व–प्रकाश खील्यो ते अपूर्व
मंगल सुप्रभात छे. ‘अहो! समकितरूपी सोनानो सूरज ऊग्यो! ’
अहो, अमृतस्वरूप सच्चिदानंद विज्ञानघन आत्मा छे; ते आनंदनो मोटो
महेरामण छे. ‘अमृत’ एटले एक तो मरे नहि, कदी नाश न थाय एवो आत्मा छे,
अने बीजुं आनंदना मीठा स्वादरूप अमृत, तेनाथी आत्मा भरेलो छे. आवा परम
अमृतस्वरूप आत्मा छे. ने शरीर तो मृतक–जड कलेवर छे, तेनाथी विज्ञानघन आत्मा
जुदो छे. आवा आत्माने द्रष्टिमां लेतां झरमर–झरमर अमृतधारा वरसे छे.–आ
सुप्रभात छे. सम्यग्दर्शन ते सुप्रभात छे, अने केवळज्ञान ते सर्वोत्कृष्ट सुप्रभात छे. आ
सुप्रभात जगतने मंगळरूप छे.
सम्यग्दर्शन थयुं त्यां आत्मा साक्षात् थयो; त्यां धर्मी जाणे छे के मारी
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगेरे समस्त पर्यायोमां मारो आत्मा ज तन्मय छे;
सम्यक्त्वादि पर्यायोमां ध्येयपणे आत्मा ज बिराजे छे, आत्मा ज तन्मय थईने ते
पर्यायरूपे परिणम्यो छे. अनंतगुणनो चैतन्यपिंड जे प्रतीतमां आव्यो ते
सम्यग्दर्शनपर्याय पोते चैतन्यपिंड छे. शुद्धपर्यायने पण चैतन्यपिंड कह्यो छे.
आ रीते मंगल प्रभातमां नव देवने याद कर्या, अने स्वसंवेदनप्रत्यक्ष आनंद–
अमृतथी भरेला भगवान चैतन्यदेवने याद कर्या, ते मंगळ छे; तेनी रुचि–ज्ञान–
अनुभूति करवा ते चैतन्यनुं अपूर्व सुप्रभात छे.
[हवे आप वांचशो–बेसता वर्षनी बोणीरूप सुप्रभात–मंगलनुं प्रवचन]
झरमर झरमर आनंदझरतुं सुप्रभात
बेसता वर्षना मंगलप्रभाते चैतन्यनी अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक वहेली सवारमां
गुरुदेवे नव देवताने याद करीने जे उत्तम बोणी मुमुक्षुओने आपी, ते हमणां आपे
वांची...वांचीने प्रसन्नता थई. त्यारपछी प्रवचनमां
समयसारनो सुप्रभात–कळश (२६८ मो)
वांचतां चैतन्यना आनंदनी मीठी झरमर
वरसावतां गुरुदेवे कह्युं के–
आत्मा ज्ञानानंदस्वभाव छे तेना स्वसंवेदनथी ज्यां सम्यग्दर्शन थयुं त्यां