तो आनंदनुं महा सुप्रभात खील्युं; चैतन्यतत्त्व पर्यायमां चकचकाट करतुं खीली नीकळ्युं.
जेम फूलझरमांथी तेजना तणखा झरमर झरे छे तेम सम्यक्त्वनी चीनगारी वडे
चैतन्यपिंडमांथी आनंदनो रस झरझर झरे छे. लौकिकमां दीवाळीना दिवसे दारूना
फटाकडा फोडे छे तेना अवाजथी तो अनेक जीवो मरी जाय छे (ने तेमां तो पाप लागे
छे), पण अहीं आत्मानी दीवाळीमां (पर्यायने अंतरमां वाळीने) अंतर्मुख थईने
चैतन्यचीनगारी मुकतां जे सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञाननो फटाकडो फूटयो ते तो
मिथ्यात्वादिने फोडीने अंदरथी चैतन्यने जीवतो–जागतो करीने आनंद पमाडे छे. आ ज
साची अहिंसक दीवाळी छे. आत्मामां आवी वीतरागदशारूप आनंदमय वर्ष बेठुं तेमां
चैतन्यनो सोनेरी–सूर्य खील्यो ने सुप्रभात प्रगट्युं, तेनो हवे कदी अस्त
नहि थाय.
जिनवाणीना अमोघ बाण छे, ए बाण जेने लाग्या तेनो मोह छेदाई जाय ने अंदरथी
आनंदमय भगवान प्रगटे.
अंदरथी खील्यो चैतन्य भगवान.
पर्यायमां आनंदनी रेलमछेल करी दे छे. वाह रे वाह! वीतरागी संतोनी वाणी! आवी
वीतरागी–जिनवाणीने पण नव देवोमां गणी छे; ते पूज्य छे.
धर्मीना अंतरमां ऊग्युं ते स्याद्वादथी लसलसाट करे छे, अने चैतन्यना अपार
महिमाथी भरेलुं छे. आत्मानो आनंदरस एवो अद्भुत छे के एकवार ते आनंदरस
पीधो त्यां मोक्षनुं वर्ष बेठुं, मोक्षनुं प्रभात तेने खील्युं; ते अल्पकाळे मोक्ष पामीने
सादि–अनंत सिद्धपणे बिराजशे.