Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : कारतक : २५००
मिथ्यात्वरात्रिनो नाश करीने मंगल आनंदप्रभात खील्युं. अने पछी केवळज्ञान थतां
तो आनंदनुं महा सुप्रभात खील्युं; चैतन्यतत्त्व पर्यायमां चकचकाट करतुं खीली नीकळ्‌युं.
जेम फूलझरमांथी तेजना तणखा झरमर झरे छे तेम सम्यक्त्वनी चीनगारी वडे
चैतन्यपिंडमांथी आनंदनो रस झरझर झरे छे. लौकिकमां दीवाळीना दिवसे दारूना
फटाकडा फोडे छे तेना अवाजथी तो अनेक जीवो मरी जाय छे (ने तेमां तो पाप लागे
छे), पण अहीं आत्मानी दीवाळीमां (पर्यायने अंतरमां वाळीने) अंतर्मुख थईने
चैतन्यचीनगारी मुकतां जे सम्यग्दर्शन अने केवळज्ञाननो फटाकडो फूटयो ते तो
मिथ्यात्वादिने फोडीने अंदरथी चैतन्यने जीवतो–जागतो करीने आनंद पमाडे छे. आ ज
साची अहिंसक दीवाळी छे. आत्मामां आवी वीतरागदशारूप आनंदमय वर्ष बेठुं तेमां
चैतन्यनो सोनेरी–सूर्य खील्यो ने सुप्रभात प्रगट्युं, तेनो हवे कदी अस्त
नहि थाय.
अहो, सम्यक्त्वना सोनेरी सूरजथी झगझगतो आत्मा शोभे छे, ते ज साचुं
सुप्रभात छे. एमां ज्ञानचक्षु ऊघड्या ते फरीने कदी बीडाशे नहि. आ तो वीतरागी
जिनवाणीना अमोघ बाण छे, ए बाण जेने लाग्या तेनो मोह छेदाई जाय ने अंदरथी
आनंदमय भगवान प्रगटे.
सद्गुरुए मार्या शब्दनां बाण रे...
अंदरथी खील्यो चैतन्य भगवान.
अहो, जैनसंतोनी वाणी वीतरागता–पोषक छे, ते रागनी एकताने तोडीने,
चैतन्यना पाताळमां पेसी जाय छे ने अंदरथी आनंदनी गंगा ऊछाळीने बहार
पर्यायमां आनंदनी रेलमछेल करी दे छे. वाह रे वाह! वीतरागी संतोनी वाणी! आवी
वीतरागी–जिनवाणीने पण नव देवोमां गणी छे; ते पूज्य छे.
वीतरागवाणी चैतन्यपिंड आत्माने प्रकाशे छे. चैतन्यनुं ज्ञान एकलुं नथी होतुं,
तेनी साथे अतीन्द्रियआनंद वगेरे अनंत भावो होय छे. आवुं आनंदझरतुं सुप्रभात
धर्मीना अंतरमां ऊग्युं ते स्याद्वादथी लसलसाट करे छे, अने चैतन्यना अपार
महिमाथी भरेलुं छे. आत्मानो आनंदरस एवो अद्भुत छे के एकवार ते आनंदरस
पीधो त्यां मोक्षनुं वर्ष बेठुं, मोक्षनुं प्रभात तेने खील्युं; ते अल्पकाळे मोक्ष पामीने
सादि–अनंत सिद्धपणे बिराजशे.
साधक कहे छे के अहो, चैतन्यनो आवो अद्भुत स्वभाव मारामां उदयरूप