Atmadharma magazine - Ank 361
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०० आत्मधर्म : ५ :
थयो छे, तो पछी हवे बीजा भावोथी (बंध–मोक्षना विकल्पोथी) मारे शुं काम छे?
आनंदमय आ चैतन्यप्रकाश मने सदाय स्फुरायमान रहो.
आगम एटले अक्षरज्ञान, ते आत्माना अक्षर–अक्षय आनंदस्वरूपने देखाडे छे.
एवा अक्षय आत्मानुं ज्ञान ते भावआगम छे. भावआगम एटले अतीन्द्रिय आत्मानुं
ज्ञान; तेमां आनंद झरे छे. आनंद वगरनुं ज्ञान कदी होय नहि. आत्मानुं जे ज्ञान थयुं
ते ज्ञानप्रभात आनंदथी भरेलुं छे. आवुं आनंदमय सुप्रभात जगतमां मंगळरूप छे.
स्वभाव–प्रभानो पुंज आत्मा चैतन्यकिरणोथी शोभे छे. मति–श्रुतज्ञानादि
अनेक निर्मळपर्यायो आत्मानी एकताने खंडित करती नथी पण ते तो आत्माना
एकत्वस्वभावने अभिनंदे छे. अनित्यपर्यायो नित्यस्वभावने अभिनंदे छे,–तेनी
सन्मुख थईने तेमां तन्मय थाय छे. त्यां चैतन्यसूर्य आत्मा सदाय उदयमान छे. अनंत
ज्ञानादि चतुष्टयथी भरेला स्वभावमां द्रष्टि करतां सम्यक्त्व–सुप्रभात ऊग्युं ते मंगळ
छे, अने केवळज्ञान ते सर्वोत्कृष्ट मंगल सुप्रभात छे.
बेसता वर्षनी मंगल
बोणीरूपे गुरुदेवे सुहस्ते मुमुक्षुओने
‘समाधितंत्र’ आप्युं...अहो! जाणे
परम वात्सल्यथी गुरुदेवे सम्यक्
बोधिसहित समाधिना ज आशीर्वाद
आप्या.
केवळज्ञान–सुप्रभात जगतमां सत्पुरुषोने वंद्य छे अने जगतने मंगळरूप छे.
अंतर्मुख थईने शुद्ध चैतन्यतत्त्वनी भावनाथी मोहने निर्मूळ करीने समस्त राग–द्वेषनो
क्षय करतां सर्वोत्कृष्ट ज्ञानज्योति प्रगट थाय छे, तेनो अत्यंत महिमा करतां श्री
पद्मप्रभस्वामी नियमसारमां (कळश २०मां) कहे छे के अहो, भेदज्ञानरूपी वृक्षनुं आ
सत्फळ वंद्य छे, जगतने मंगळरूप छे.
–आवुं सुप्रभात केम प्रगटे?–के ज्ञान ज उपाय छे ने ज्ञान ज उपेय छे,
–मोक्षमार्ग अने मोक्ष बंने ज्ञानमय ज छे, तेमां बीजो कोई राग–विकल्प नथी. आवा
ज्ञानमात्र भावने ओळखीने तेनो जे आश्रय करे छे तेने, अनादिसंसारथी अलब्ध
एवी चैतन्यनी साधकभूमिका प्राप्त थाय छे, एटले के अनादिथी कदी नहि