सागरवाळा शेठश्री भगवानदास शोभालालजीनी
उपर कुल रप प्रवचनो कर्यां छे, तेमांथी १६ प्रवचनो
‘अष्टप्रवचन’ ना बे पुस्तकरूपे छपाई गया छे; ने बाकीनां
प्रवचनोनुं त्रीजुं पुस्तक तैयार थई रह्युं छे; तेमांथी केटलोक
नमूनो अहीं आप्यो छे. प्रवचनो अत्यंत सुगम शैलीना
होवाथी सर्वे जिज्ञासुओने उपयोगी छे; ने तेमां जैन–श्रावक
प्रवचननो बीजो भाग मात्र हिंदीमां छपायेल छे;
गुजरातीमां छपाववानी जेमनी भावना होय तेमणे
लेखकनो संपर्क साधवो.)
शरूआतमां, केवळज्ञानद्रष्टिथी समस्त विश्वने देखनारा महावीर परमात्माने,
छे. जुओ, अरूपी सिद्ध भगवंतोनुं अने अरिहंत भगवंतोनुं आवुं स्वरूप शुद्ध जैनमार्ग
सिवाय बीजे क्यांय होतुं नथी. श्रावकने शुद्ध जैनमार्ग सिवाय बीजानी श्रद्धा स्वप्ने
पण होय नहि. पहेलांं चोथेगुणस्थाने आत्मानी अनुभूतिसहित सम्यग्दर्शन थाय छे,
पछी पांचमा गुणस्थाने आत्मानी विशेष शुद्धता सहित श्रावकनां व्रतादिनुं आचरण
होय छे;–एवो जैनधर्मनो क्रम छे. माटे जेओ पोतानुं हित चाहता होय तेओ कुमार्ग
छोडी, वीतराग जैनमार्गना सेवन वडे आत्माने ओळखीने शुद्ध सम्यग्दर्शन करो अने
पछी श्रावकनां व्रतादिनुं आचरण करो, एम संतोनो उपदेश छे.
असंयोगी शुद्ध–पूर्णानंदमय चैतन्यस्वरूप आत्मा धर्मीने अंतरमां देखाय छे.–आवा
आत्माने