बाह्य वैभवमां नथी ते अपूर्व सुख चैतन्यना श्रद्धा–ज्ञानमां धर्मीने निरंतर वर्ते छे.
विभावोथी विमुख थईने सिद्धपद–सन्मुख चाली, ते मोक्षमार्गी थयो. पछी जेम जेम
शुद्धता अने स्थिरता वधती जाय छे तेम तेम श्रावकधर्म अने मुनिधर्म प्रगटे छे.
श्रावकपणुं–मुनिपणुं ते आत्मानी शुद्धदशामां रहे छे, ते कांई बहारनी चीज नथी. हजी
तो जैनधर्ममां तीर्थंकरदेवे मोक्षमार्ग केवो कह्यो छे तेनी पण खबर न होय, ने
विपरीतमार्गमां ज्यां–त्यां माथुं झुकावतो होय, एवा जीवने तो जैनपणुं के श्रावकपणुं
होतुं नथी. जैन थयो ते जिनवरदेवना मार्ग सिवाय बीजाने स्वप्नेय माने नहीं.
पण छे. ते विकार पोतानी भूलथी छे ने स्वभावना भान वडे ते टळी शके छे, ने शुद्धता
थई शके छे. विकारभावमां अजीवकर्मो निमित्त छे, विकार टळतां ते निमित्त पण छूटी
जाय छे. आ प्रमाणे द्रव्य–पर्याय, शुद्धता–अशुद्धता, निमित्त–ए बधानुं ज्ञान बराबर
करवुं जोईए. ते जाणीने शुद्ध आत्मानी द्रष्टि करनार जीव सम्यग्द्रष्टि छे.
होय, ए तो बहारथी वळगी छे;–तो ते वात खोटी छे. भाई, पर्याय पण आत्मानुं
स्वरूप छे, ते आत्मानो एक स्वभाव छे; सिद्धमांय पर्याय तो छे, पर्यायने कांई छोडी
देवानी नथी पण तेमां विकार छे ते छोडवानो छे. शुद्ध–आनंदमय निर्विकार पर्याय ते
तो आत्मानुं स्वरूप छे.