Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 45

background image
: १८ : आत्मधर्म : मागशर : रप००
* ज्ञान स्वसंवेद्य छे, तेने पोताने पोतानुं संवेदन करवामां वच्चे रागनुं–
ईंद्रियोनुं के बीजा ज्ञाननुं आलंबन नथी. आवा ज्ञानना स्वसंवेदनमां
भेगो आनंद छे, वीतरागता छे, प्रभुता छे, स्वच्छता छे–एम अनंतधर्मो–
सहित ज्ञान अनुभवमां आवे छे. आवुं ज्ञान भगवान आत्माने प्रसिद्ध करे
छे.
* धर्मात्मा तो छे–धीरा...गुणगंभीरा *
सम्यक्त्ववडे शुद्ध आत्माने अनुसरनारा आराधक जीवो धीर होय छे,
धीरा–गुणगंभीरा एवा ते जीवोए पोतानी धी=बुद्धिने स्वभावमां प्रेरी छे, ने
संसारथी पाछी वाळी दीधी छे; स्वभावसन्मुख थयेला ते जीवो श्रद्धा–ज्ञान–आनंद
आदि अनंतगुणथी गंभीर छे,–अनंत गुणनुं परिणमन तेमनी ज्ञानधारामां वर्ती
रह्युं छे.–आवुं सम्यक्त्वनुं आचरण चोथा गुणस्थाने प्रगट थाय छे, ने त्यां संसार
मर्यादामां आवी जाय छे. ते जीव सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निजगुणनी
आराधना वडे कर्मोनी निर्जरा करीने अल्पकाळमां मोक्ष पामे छे.
* धर्मात्माने दुःख होय के न होय? *
दोष कहो–दुःख कहो के मोह कहो; जेम दर्शनमोह ते दोष अने दुःख छे, तेम
चारित्रमोह पण दोष अने दुःख छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे
निर्मोहपरिणाम छे तेनी आराधना ते गुणनी आराधना छे, ते निर्दोष छे, ते
आनंदमय छे. धर्मीने पण जेटला चारित्रमोहना दोषपरिणाम छे तेटलुं दुःख ज छे,
तेनुं वेदन तेनी अवस्थामां छे; ने ते ज वखते सम्यक्त्वादि निजगुणनी जेटली
आराधना छे तेटलुं सुख छे.–आम साधकने बंने भावोनी धारा (एक सुखरूप
धारा, एक दुःखरूपधारा–एम बंने धारा) एक पर्यायमां वर्तती होय छे. तेने जेम
छे तेम जाणवी जोईए.
धर्मात्माने एकलुं दुःख न होय. जेटली आराधना छे तेटलुं सुख तो धर्मीने
निरंतर वर्ते छे. पण, सम्यग्दर्शन थयुं एटले पछी अस्थिरताना दोषनुं मोहनुं पण दुःख
तेने होय ज नहि–एम कोई कहे, तो ते बराबर नथी. तेने पण जेटलो मोह छे तेटलो
दोष छे ने तेटलुं दुःख पण छे. अने ते वखते ज रागथी भिन्न दुःखथी भिन्न एवी जे
ज्ञानचेतना तेने परिणमी रही छे तेटलुं सुख पण तेने निरंतर वर्ती रह्युं छे. आवी
आश्चर्यकारी साधकदशा छे.