Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : १९ :
* वस्तुनी शोभा: अनेकान्तनो प्रभाव *
(अनेकान्त ते जीवन: एकांत ते मरण)
वस्तुनी शोभा पोताना स्वाधीन धर्मो वडे छे. पोताना अनंत धर्मोथी
पोतानुं अस्तित्व ते वस्तुनी शोभा छे, अने ते वस्तुने पोताना स्वाधीन धर्ममां
टकवा माटे के परिणमवा माटे अन्य कोई वस्तुनी जरूर नथी, ते ज वस्तुनी
स्वतंत्रता छे, ने स्वतंत्रता ते ज साची शोभा छे.
वस्तुनो कोई धर्म बीजाने आधीन होय तो तेमां वस्तुनी स्वाधीनता पण
नथी ने शोभा पण नथी. धर्मी तो जाणे छे के चेतनलक्षणथी लक्षित हुं, मारी
चेतनामां ज मारा अनंत धर्मोनुं परिणमन एकसाथे वर्ते छे. मारा परिणमनमां
परनो अभाव स्वयमेव छे. एवो अनेकान्तस्वभावनो प्रभाव छे.
अरे प्रभु! तारा द्रव्य–गुण–पर्यायमां तारुं स्वाधीन–स्वतंत्र अस्तित्व पण
तने न भासे तो भगवान अर्हंतदेवना शासनमां आवीने तें शुं कर्युं? भगवान
अर्हंतदेवनुं शासन तो वस्तुने एवा अनेकान्तस्वरूपे उपदेशे छे के दरेक वस्तु
पोताना अनंत धर्मना अस्तित्व सहित पोतामां परिणमे छे, परमां ते पोतानुं
नास्तिपणुं राखीने परिणमे छे. आम स्वाधीन अस्तित्व टकावीने दरेक वस्तु
पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां परिणमे छे.–आवुं अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप, स्व–
परनी भिन्नता बतावीने भ्रमनो नाश करे छे ने ज्ञानस्वरूपे पोतानो निर्बाध
अनुभव करावे छे.–आ ज आत्मानुं जीवन छे. आवुं ज्ञानमय सत्य जीवन
अनेकांत वडे ज जीवाय छे. एकांतवादीने तो स्व–परनी भिन्नता ज भासती नथी,
एटले स्व–परनी एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्व छे, त्यां ज्ञान–आनंदमय साचुं जीवन
क्यांथी होय? तेथी कहे छे के एकांत ते भावमरण छे, ने अनेकान्त ते चैतन्यमय
जीवन छे.
* सर्व प्रकारना प्रयत्न वडे आत्माने जाणो *
वीरनिर्वाण सं. रप०० सूत्रप्रभात गा. १६
जैनशासनमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के अहो जीवो! अंतरना उद्यम
वडे तमे आत्माने जाणो. आत्माने जाण्या वगर जे कोई शुभक्रियाओ छे ते