टकवा माटे के परिणमवा माटे अन्य कोई वस्तुनी जरूर नथी, ते ज वस्तुनी
स्वतंत्रता छे, ने स्वतंत्रता ते ज साची शोभा छे.
चेतनामां ज मारा अनंत धर्मोनुं परिणमन एकसाथे वर्ते छे. मारा परिणमनमां
परनो अभाव स्वयमेव छे. एवो अनेकान्तस्वभावनो प्रभाव छे.
अर्हंतदेवनुं शासन तो वस्तुने एवा अनेकान्तस्वरूपे उपदेशे छे के दरेक वस्तु
पोताना अनंत धर्मना अस्तित्व सहित पोतामां परिणमे छे, परमां ते पोतानुं
नास्तिपणुं राखीने परिणमे छे. आम स्वाधीन अस्तित्व टकावीने दरेक वस्तु
पोताना द्रव्य–क्षेत्र–काळ–भावमां परिणमे छे.–आवुं अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप, स्व–
परनी भिन्नता बतावीने भ्रमनो नाश करे छे ने ज्ञानस्वरूपे पोतानो निर्बाध
अनुभव करावे छे.–आ ज आत्मानुं जीवन छे. आवुं ज्ञानमय सत्य जीवन
अनेकांत वडे ज जीवाय छे. एकांतवादीने तो स्व–परनी भिन्नता ज भासती नथी,
एटले स्व–परनी एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्व छे, त्यां ज्ञान–आनंदमय साचुं जीवन
क्यांथी होय? तेथी कहे छे के एकांत ते भावमरण छे, ने अनेकान्त ते चैतन्यमय
जीवन छे.