Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : मागशर : रप००
करवा छतां जीव संसारमां ने संसारमां ज भमे छे; शुभरागनी क्रियाओ पण
अनिष्ट फळवाळी छे. माटे हे जीव! तुं प्रयत्नपूर्वक आत्मानुं स्वरूप जाणीने तेनी
श्रद्धा कर...तेना वडे तुं मोक्षने पामीश.
जैनशासन तो सम्यक्त्वादि शुद्ध भावमां छे, रागमां के जडनी क्रियामां
जैनशासन नथी. जैनशासनमां भगवाने मोहरहित सम्यक्त्वादि शुद्धभावने ज
धर्म अने मोक्षमार्ग कह्यो छे, शुभरागने जैनशासनमां पुण्य कह्युं छे, पण तेने
मोक्षमार्ग नथी कह्यो. शुभराग ते तो मोहनो अंश छे, ते कांई मोक्षमार्गनो के
धर्मनो अंश नथी. माटे हे भव्य! भावपूर्वक तुं शुद्धभावने जाण; प्रयत्नवडे तुं
आत्मानुं स्वरूप जाण...तेना वडे मोक्ष थशे. आत्माने जाण्या वगर, शुभरागनी
क्रियाओ वडे कांई मोक्ष नहि थाय, संसारभ्रमण ज थशे. माटे हे भव्य! मोक्षने
अर्थे तुं आत्माने जाणवानो उद्यमी था.
मोक्षनुं कारण तो शुद्ध आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–आचरण छे, राग कांई मोक्षनुं
कारण नथी. पहेलांं आत्माना स्वरूपनो विचार होय के हुं ज्ञान छुं; राग अने
ज्ञान एक स्वादवाळा नथी पण भिन्न स्वादवाळा छे;–आम भेदज्ञानना विचार
वखते साथे विकल्प होय छे, पण त्यां आत्माने जाणवानुं काम तो ज्ञान करे छे.
ज्ञाननुं काम विकल्पथी जुदुं छे. ते ज्ञानना जोरे विकल्पथी भिन्न चिदानंद आत्मा
अनुभवमां आवे छे. आ रीते ज्ञानवडे आत्माने जाणीने तेनी श्रद्धा करो. तेना
वडे तमे शीघ्र मोक्षने पामशो.
जेने मोक्ष ईष्ट होय तेणे आत्माने ईष्ट करवो जोईए. आत्माने जे ईष्ट
करे ते सर्व प्रयत्नथी आत्माने जाणे, तेनी श्रद्धा करे, तेनी अनुभूति करे. माटे
हे मोक्षार्थी! आत्माने ईष्ट करीने तेमां ज उद्यम जोडजे, तारा श्रद्धा–ज्ञानने
बीजे क्यांय रोकीश मा. अरे, प्रयोजनभूत आत्माना ज्ञान–श्रद्धान वगर बीजा
बाह्य आडंबरनुं के पुण्यनुं तारे शुं काम छे? जेनाथी मोक्षनी सिद्धि न थाय
एवा ते बाह्य भावोनो प्रेम तुं छोड, ने त्रिविधे आत्माने ज ईष्ट करीने
उद्यमवडे तेने ज जाण अने तेनी श्रद्धा कर. मोक्षनुं कारण तो शुद्धभाव छे, ने ते
शुद्धभाव तो आत्माने जाणवाथी ज थाय छे; माटे हे भव्य मोक्षने अर्थे तुं
प्रयत्नथी आत्माने जाण.