: मागशर : रप०० आत्मधर्म : २१ :
सर्वे जिज्ञासुओने प्रिय एवा आ विभाग द्वारा अनेक
अवनवी चर्चाओ तेमज जिज्ञासुओना विचारो जाणीने
आपने प्रसन्नता थशे. आप पण जिज्ञासुभावे आपना प्रश्नो,
के चर्चाओ आ विभाग माटे मोकली शको छो. आत्मधर्म माटे
संपादकने योग्य लागे ते प्रश्नोना जवाब अपाय छे.
समयसारना साचा अभ्यासनुं उत्तम फळ शुं छे? आत्मा पोते अतीन्द्रिय
आनंदमय सुखरूप थई जाय छे ते समयसारनुं महा मंगळ फळ छे. आत्मा पोते
परमब्रह्म, सकल वस्तुनो प्रकाशक छे–तेनो आ शब्दब्रह्म (समयसार) वडे निर्णय
करीने, तेमां ठरतां आत्मा पोते परमसुखरूपे परिणमे छे.–आवा मंगल
आशीर्वचनपूर्वक आचार्यदेवे समयसार पूरुं कर्युं छे.
‘सर्वार्थसिद्धि’ मां केटला देवो होय छे? सर्वार्थसिद्धिमां संख्यात देवो होय छे.
सर्वार्थसिद्धि–विमान केवडुं छे?
ते आ जंबुद्वीप जेवडुं ज छे, एटले के एक लाखयोजन व्यासनुं छे. आ माप
पण एम ज सूचवे छे के त्यां रहेनारा सर्वार्थसिद्ध–देवो संख्याता ज छे, असंख्याता
नथी. अने ते बधा देवो नियमा सम्यग्द्रष्टि छे तथा एकावतारी छे.
‘नियमा’ एटले शुं? अने ‘भजनीय’ एटले शुं? अमुक स्थाने कोई वस्तु
चोक्कस होय ज–एवो नियम होय ते ‘नियमा’ कहेवाय. अने, अमुक स्थाने कोई वस्तु
होय पण खरी, के न पण होय–एवी स्थितिने ‘भजनीय’ कहेवाय छे.
ते बंनेनां केटलांक द्रष्टांतो:–
(१) ज्यां केवळज्ञान होय त्यां वीतरागता (नियमा) होय ज.
(र) वीतरागता होय त्यां केवळज्ञान भजनीय छे–एटले के ते होय, अथवा न
पण होय;
–जेमके बारमा गुणस्थाने वीतरागता छे पण केवळज्ञान नथी;