Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : मागशर : रप००
–तेरमा गुणस्थाने वीतरागता छे
ने केवळज्ञान पण छे.
(३) सम्यक्चारित्र (मुनिदशा) होय
त्यां सम्यग्दर्शन होय ज
(नियमा).
–केमके सम्यग्दर्शन वगर कोई
जीवने मुनिदशा होती नथी.
(४) सम्यग्दर्शन होय त्यां मुनिदशा
भजनीय छे (–होय अगर न पण
होय).–केमके घणां जीवोने
सम्यग्दर्शन होवा छतां मुनिदशा
होती नथी.
(प) राग होय त्यां जीव होय ज
(नियमा).–केमके जीवना
अभावमां क्यांय राग होतो नथी.
(६) जीव होय त्यां राग होय के न पण
होय (भजनीय). जेमके
सिद्धदशामां जीव छे पण राग
नथी; अरिहंत भगवान जीव छे
पण राग नथी.
(७) केवळज्ञान होय त्यां संसारीपणुं
भजनीय छे. जेमके–
–अरिहंतोने केवळज्ञान छे ने
संसारीपणुं छे,–सिद्ध भगवंतोने
केवळज्ञान छे पण संसारीपणुं
नथी.
(८) संसारीपणुं होय त्यां केवळज्ञान
भजनीय छे.–जेमके–
–तेरमा–चौदमा गुणस्थाने संसारीपणुं छे
ने केवळज्ञान पण छे;
–नीचेना गुणस्थानोमां संसारीपणुं
छे पण केवळज्ञान नथी.
(९) अरिहंतोने तीर्थंकरप्रकृतिनो उदय
भजनीय छे,–कोईक अरिहंतोने ते
होय छे, ने कोईकने नथी होतो.
(१०) तीर्थंकरोने अरिहंतपणुं नियमा
होय छे...केमके बधाय तीर्थंकरो
केवळज्ञानवडे अरिहंत थया छे.
(११) जीवने असंख्यप्रदेशीपणुं नियमा
होय छे.
(१र) असंख्यप्रदेशीपणामां जीवपणुं
भजनीय छे. (–केमके
असंख्यप्रदेशीपणुं होवा छतां
धर्मास्तिकाय वगेरेने जीवपणुं
नथी, ते अजीव छे.)
अहीं नियमा के भजनीय संबंधमां
१र दाखला आप्या. हवे तमारी
समजण पाकी करवा माटे, नीचेना
दश दाखलामां पण, ते नियमरूप
छे के भजनीय छे–तेनो विचार
करो:–
(१) योगनुं कंपन होय त्यां केवळज्ञान...
(नियमथी के भजनीय?)
(र) केवळज्ञान होय त्यां पंचेन्द्रियपणुं..
(बराबर विचारीने कहेजो.)
(३) सम्यग्ज्ञान होय त्यां राग...
(४) अरूपीपणुं होय त्यां चेतनपणुं...
(प) चेतनपणुं होय त्यां अरूपीपणुं...
(६) केवळज्ञान होय त्यां परम
औदारिकशरीर...