: मागशर : रप०० आत्मधर्म : २३ :
(७) जीवनुं लोकव्यापकपणुं...
(८) जीवमां राग...
(९) जीवमां ज्ञान...
(१०) अयोगीपणुं होय त्यां केवळज्ञान...
(विचार करीने खाली भागमां
जवाब लखी राखशो. सोनगढ
मोकलवानी जरूर नथी. आवता अंकमां
जवाब छपाशे तेनी साथे मेळवी लेजो.)
ऋषभदेवना माताजी मरूदेवीनो
जीव अत्यारे क्यां छे?
ते जीव अत्यारे मोक्षमां छे.
स्त्रीने तो मोक्ष नथी, तो
मरूदेवीमाता मोक्षमां कई रीते गया?
स्त्रीपर्यायमां मोक्ष नथी ए साचुं, अने
मरूदेवीनो जीव अत्यारे मोक्षमां छे.–ए
पण साचुं ज छे; एटलुं ज नहि पण
अजितनाथभगवान मोक्ष पधार्या त्यार
पहेलांं असंख्य वर्ष पहेलांं माता
मरूदेवीनो आत्मा मोक्ष पाम्यो छे. ते आ
प्रमाणे–प्रथम तो तीर्थंकरोना माताजी
नियमथी मोक्षगामी होय छे. माता मरूदेवी
ते भवे आराधक थई, स्त्रीपर्यायने छेदी
स्वर्गना महान देव थया, त्यांथी थोडाक
सागरोपममां नीकळी मनुष्य थई मुनिपणुं
लई मोक्ष पाम्या. एटले ऋषभदेव पछी
थोडाक ज सागरोपम बाद तेओ मोक्ष
पाम्या. ज्यारे अजितनाथ भगवान तो
ऋषभदेव पछी पचास–
लाख–करोड सागरोपम वीत्या बाद
थया; एटले मरूदेवी मातानो आत्मा,
अजितनाथ भगवानथी असंख्य वर्ष
पहेलांं मोक्ष पाम्यो छे. अत्यारे ते
सिद्धालयमां सिद्धपणे बिराजे छे.
ते सिद्धभगवंतने नमस्कार हो.
सम्यग्दर्शननी प्राप्ति माटे, आत्माने
ओळखवा माटे आ केवो समय छे?
भाई, आत्माने ओळखवा माटे
अने सम्यग्दर्शन पामवा माटे अत्यारे तने
उत्तम अवसर मळ्यो छे, आ उत्तम
अवसरने तुं चूकीश मा. आवो मजानो
जैनधर्म तने मळ्यो, आवा सुंदर देव–गुरु
तने मळ्या. तो सम्यग्दर्शन माटे आवो
उत्तम अवसर बीजो क््यो छे? माटे
महाभाग्ये आवो रूडो अवसर पामीने
तेने तुं सफळ करजे.
आत्मामां श्रद्धा–ज्ञान–आनंद वगेरे
अनंतागुणो एकसाथे स्वादमां आवे छे ते
ज अद्भुत रस छे. दर्शन सामान्यनुं
ग्राहक, ज्ञान विशेषनुं ग्राहक, बंने गुणना
कार्यमां भेद, छतां अभेदअनुभूतिमां ते
बधा गुणनो रस एकपणे स्वादमां आवे
छे, अनंतगुणनो रस स्वानुभूतिमां
समाय छे, ते ज अद्भुतरस छे.
स्वानुभवरसनी अद्भुतताने सम्यग्द्रष्टि
ज जाणे छे.