: २४ : आत्मधर्म : मागशर : रप००
जे चैतन्यभावनो निर्णय करवानो
छे तेना ज अंश वडे तेनो निर्णय थाय छे.
ज्ञानानंदस्वभावनी सन्मुख थईने तेनो
निर्णय करतां पर्यायमां तेना अंशनुं वेदन
थयुं छे; ज्ञान–आनंदरूप थयेलो अंश पूर्ण–
ज्ञानानंदस्वरूपनो निर्णय करे छे. राग ते
कांई ज्ञाननो अंश नथी, एटले रागवडे
ज्ञानस्वभावनो निर्णय थतो नथी.
अंतर्मुखी ज्ञान वडे ज ज्ञानस्वभावनो
निर्णय थाय छे; ते अपूर्व छे.
आत्माना स्वभावमां जे निःशंक छे
तेने भय शो?
अने जे निर्भय छे तेने शंका शी?
सम्यग्द्रष्टि जीवो स्वरूपमां निःशंक
छे, तेथी मरणादिना भयथी रहित निर्भय
छे, तेमने शंका थती नथी के मारुं मरण
थई जशे!
आवा सम्यग्दर्शनवडे मोक्षनो
उत्सव उजववा सौ साधर्मीओ आवजो,–
एम श्रीगुरुनुं आमंत्रण छे.
* सम्यक्चारित्रनी किंमत वधु छे के
सम्यग्दर्शननी?
* सम्यग्दर्शन करतां पण सम्यक्चारित्र
वधु पूज्य छे.
* सम्यक्चारित्ररूप मुनिदशा क्यारे होय?
पहेलांं सम्यग्दर्शन होय, पछी ज
सम्यक्चारित्ररूप मुनिदशा होय.
* सम्यग्दर्शन न होय तो? तो
सम्यग्दर्शन वगर चारित्रदशा के
मुनिपणुं होई शकतुं नथी.
* सम्यग्दर्शन होय पण चारित्रदशा
न होय तो? तो आराधकभाव
चालु रहे पण मोक्ष न थाय.
* मोक्षनुं मूळ कोण छे? चारित्र
विना मोक्ष नथी, ने सम्यग्दर्शन
वगर चारित्र नथी; एटले मोक्षनुं
मूळ सम्यग्दर्शन छे.
* सम्यग्दर्शन क्यारे थाय?
अरिहंतदेवना शुद्धआत्मानुं साचुं
स्वरूप ओळखे, तेमना कहेला
जैनधर्मने बराबर ओळखे, अने
जैनदर्शनमां कहेला आत्माना
शुद्धस्वरूपने ओळखे त्यारे
सम्यग्दर्शन थाय छे.
* सम्यग्दर्शननी किंमत केटली?
अहो, एना महिमानी शी वात!
सिद्ध भगवंतोना अतीन्द्रियसुखनी
जात जेणे चाखी लीधी छे अने
अनादिकाळना विकारभावोथी जे
जुदुं पडी गयुं छे–ते सम्यग्दर्शन
चैतन्यना अनंतगुणना स्वादथी
भरेलुं छे, तेनो अपार महिमा