Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : २५ :
विकल्पातीत छे–वचनातीत छे, सम्यग्दर्शननो पण आवो महिमा छे, तो
सम्यक्चारित्रना महिमानी शी वात! अव्रती सम्यग्द्रष्टि पण आवो महिमावंत छे तो
पछी सम्यक्चारित्रवंत मुनिभगवंतना अपार महिमानुं तो शुं कहेवुं? अहो, तेमने
नमस्कार हो...नमस्कार हो.
* आत्मामां धर्मना बीज वाव्यां ते क्यारे फळे? अहा, धर्मनुं बीज तो वाव्या
भेगुं ज ते फळे छे,–ए ज वखते जीवने शांतिना वेदनरूप फळ आवे छे.
* धर्मीने ज्ञानचेतना क्यारे होय? निरंतर होय. उपयोगरूप ज्ञानचेतना भले
क्यारेक थाय, पण राग अने ज्ञाननी भिन्नताना वेदनरूप ज्ञानचेतना तो तेना अंतरमां
निरंतर परिणमी ज रही छे.
* ज्ञानीने कर्मचेतना अने कर्मफळचेतना होय? हा,–बे प्रकारे होय:–
(१) ज्ञानादिनी शुद्धतारूप जे शुद्धकार्य थयुं छे तेना अनुभवरूप शुद्धकर्मचेतना
ज्ञानीने होय छे; तेमज तेना फळरूप आनंदनुं वेदन छे, एवी शुद्धकर्मफळचेतना पण
ज्ञानीने छे. आ रीते ज्ञानीने शुद्ध कर्मचेतना तथा शुद्धकर्मफळचेतना होय छे. (आ
कर्मचेतना तथा कर्मफळचेतना मोक्षनुं कारण छे.) (र) हजी ज्ञानीने पण जेटला
रागादिभावो थाय छे तेटली अशुद्धकर्मचेतना छे, तथा जेटलुं हर्ष–शोकनुं वेदन छे तेटली
अशुद्धकर्मफळचेतना पण छे. (आ कर्मचेतना तथा कर्मफळचेतना बंधनुं कारण छे.)
* साधकदशामां आवी बंने (शुद्ध तथा अशुद्ध) चेतना होय छे.
* अज्ञानीने एकली अशुद्ध कर्मचेतना तथा कर्मफळचेतना होय छे.
* वीतरागने एकली शुद्ध कर्मचेतना तथा कर्मफळचेतना होय छे.
वीरनाथना निर्वाणना आ अढीहजारमा वर्षमां ज्ञानचेतनानुं
आराधन करीने वीरनाथना निर्वाणमार्गमां चालो.
एक शुद्धि:– आत्मधर्मना गतांकमां (पानुं ११ लाईन १३ मां) शरतचूकथी एक
भूल रही गई छे ते सुधारीने वांचवा विनति छे. भूल प्रत्ये ध्यान खेंचनार
मुमुक्षुओना आभारी छीए. ‘ज्ञानने स्व तरफ न वाळे तो ज’ एम छपायेल छे तेने
बदले ‘ज्ञानने स्व तरफ वाळे तो ज’ एम वांचवुं.