Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : २९ :
अहो, अरिहंतोनुं अतीन्द्रियसुख!
तेने श्रद्धनार नीकटभव्य छे.
बंध–मोक्ष ते जीवनां परिणाम छे;
मोक्षमां के बंधमां जीव पोते एकलो छे.
पर्याय ए कांई बहारनो वळगाड नथी.
अहो, जैनदर्शननी अद्भुतता न्यारी छे!
अहो, जैनमार्गमां सर्वज्ञदेवे कहेलुं जीवादि तत्त्वोनुं स्वरूप ओळखीने जेणे,
अनंतकाळमां नहि करेल एवुं अपूर्व सम्यग्दर्शन कर्युं ते जीव भगवानना मार्गमां
आव्यो, ते संसारथी परांग्मुख थईने मोक्षना मार्गमां आव्यो. त्यां एकलुं
सम्यग्दर्शन नथी, तेनी साथे तो आनंद, वीतरागता, अतीन्द्रियता ने मोक्षसुखनो
नमूनो छे, चैतन्यना अनंतगुणनो रस सम्यग्द्रष्टिनी अनुभूतिमां घोळाय छे.
जीवना एकसमयना शुद्ध परिणाममां अनंत गुणना रसनो स्वाद छे, ए ज तेनी
अद्भुतता छे.
मोक्ष के संसार ते जीवनां परिणाम छे, ते कांई जीवथी बहार नथी.
शुद्धतानी पूर्णता ते मोक्ष; अंशे शुद्धता ते मोक्षमार्ग; अने अशुद्धपरिणाम ते संसार
छे. जीवनो संसार कांई शरीर–कर्म–मकान–पैसा वगेरे अजीवमां नथी रहेतो;
जीवना अशुद्धभावमां ज जीवनो संसार छे; मिथ्यात्व–राग–द्वेषादि भावो ते ज
संसार छे. ए ज प्रमाणे अंतर्मुख परिणति थतां सम्यग्दर्शनादि शुद्धपरिणाम थाय
छे तेमां मोक्षमार्ग अने मोक्ष रहे छे, ते क्यांय बहारमां नथी रहेता, के बहारथी
नथी आवतां, ज्यां पोताना आत्मानुं सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणमन थयुं
त्यां आत्मा पोते ज मोक्षमार्गरूप अने मोक्षरूप थयो. भाई, तारा संसारनी के
मोक्षनी बधी रमत तारा द्रव्य–गुण–पर्यायमां छे, बहारमां बीजा साथे तारे कांई
लेवा–देवा नथी.–आवो स्वाधीन जैनधर्म छे.
दरेक द्रव्य परिणमनस्वभावी छे; जीवमां पण परिणमनस्वभाव छे; ते
सर्वथा स्थिर नथी पण परिणमनशील छे. सम्यग्दर्शन पण द्रव्यनां परिणाम छे ने
सिद्धपद