Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : मागशर : रप००
पण द्रव्यनां परिणाम छे. वस्तुमां परिणमन न माने तेने तो मिथ्यात्व टळीने
सम्यक्त्व थवानो, के संसार टळीने मोक्ष थवानो अवकाश ज नथी रहेतो.
परिणमन होय तो ज ए बधुं बनी शके. जीवनुं अज्ञान परिणमन ते संसार छे;
चिदानंदस्वभावनी सन्मुख थईने ज्ञानपरिणमन (एटले के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्ररूप परिणमन) थयुं ते मोक्षमार्ग छे, ने तेनी पराकाष्टा ते मोक्ष छे. आम
आत्मा पोते पोताना परिणमन स्वभावने लीधे परिणमीने, पोते बंध के मोक्षरूपे
थाय छे, कोई बीजुं तेना बंध–मोक्षने करतुं नथी. द्रव्य–गुणस्वरूपे आत्मा कायम
एकरूप रहे छे ने पर्यायरूपे ते नवी–नवी अवस्थारूपे थया करे छे,–आवो तेनो
अनेकान्तस्वभाव छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए त्रणे ज्ञानस्वभावना आश्रये
थता शुद्ध–वीतरागी परिणाम छे, तेना फळरूप सिद्धदशा छे ते पण आत्माना
परिणाम छे. सिद्धनेय पर्याय होय छे; पर्याय ते कांई वळगाड के उपाधिभाव नथी,
ते तो वस्तुनो स्वभाव छे; ते वस्तुथी जुदो पडे नहि. वस्तु पोते
परिणमनस्वभावी छे. परिणमनस्वभाव वगर आत्मवस्तुनो ज अभाव थई जाय.
परिणाम वगरनी कोई वस्तु होय नहि.
संसारदशामां पण आत्मा एकलो ज पोते पोतानी संसारपर्यायरूपे
परिणमतो हतो, मोक्षमार्गनी दशामां पण आत्मा पोते एकलो ज पोतानी
सम्यग्दर्शनादि पर्यायरूपे परिणमी रह्यो छे, ने मोक्षदशामां पण आत्मा एकलो ज
पोते पोताना पूर्ण ज्ञान–आनंदरूप पर्यायमां परिणमे छे.–आम
परिणमनस्वभाववाळो आत्मा त्रणेकाळे परथी जुदो, पोते पोतानी पर्यायरूपे
परिणमे छे. आत्माना आवा स्वभावने अज्ञानी ओळखतो नथी, एटले पोताना
बंध–मोक्ष ते परने कारणे थवानुं माने छे. ते अज्ञानीने मोक्षनी तो खबर नथी, ने
पोतानी संसारपर्यायनी पण खबर नथी; शरीरादिमां ते पोतानो संसार माने छे,
पण ते कांई खरेखर संसार नथी. संसार तो जीवनी राग–द्वेष मोहरूप अशुद्ध
पर्याय छे. तेमज धर्म अर्थात् मोक्षमार्ग ते पण धर्मीजीवना शुद्ध परिणाम
(सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र) छे, ते कांई शरीरनी चेष्टामां नथी. आ रीते
मिथ्याद्रष्टि जीवने पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायरूप वस्तुनुं भान नथी, एटले शुद्ध–
तत्त्वथी ते विमुख छे. ते कां तो वस्तुने पर्याय वगरनी एकांत नित्य माने छे, कां
तो एकांत क्षणिक माने छे, कां तो शरीरादि जड साथे आत्माने एकमेक माने छे, कां
रागने–पुण्यने मोक्षमार्ग तरीके माने छे, एटले तेनी श्रद्धा ने तेनुं ज्ञान
वस्तुस्वरूपथी तद्न विपरीत छे–मिथ्या छे; अने मिथ्या श्रद्धा–ज्ञानपूर्वकनां
शुभआचरण पण मिथ्या