Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : ३१ :
ज होय. सम्यग्द्रष्टिनां श्रद्धा–ज्ञान वस्तुस्वरूपने बराबर अनुकूळ होय छे, द्रव्य–गुण–
पर्यायस्वरूप वस्तुने ते जेम छे तेम बराबर जाणे छे; देहादिनी क्रियाने ते आत्माथी
भिन्न जाणे छे, शुभरागने पण ते मोक्षमार्गथी भिन्न जाणे छे; आ रीते जडथी ने
रागथी भिन्न पोताना शुद्ध चैतन्यतत्त्वने जाणीने ते धर्मी जीव मोक्षनी सन्मुख वर्ते छे.
अहो, मोक्षसुख तेनी प्रतीतमां आवी गयुं छे, तेना श्रद्धा–ज्ञान मोक्षसुखने स्पर्शी गयां
छे, ने संसारथी विमुख थई गयां छे.
प्रवचनसारमां श्री कुंदकुंदस्वामी केवळी भगवंतोना अतीन्द्रियसुख प्रत्ये महान
प्रमोदथी कहे छे के–अहो! सर्वज्ञना अतीन्द्रियसुखने सांभळतां वेंत जे जीव उत्साहथी तेनो
स्वीकार करे छे ते नीकट भव्य छे, अने आवा अतीन्द्रियसुखने सांभळीने पण जे श्रद्धतो
नथी, तेना प्रत्ये उत्साहित थतो नथी, ने ईन्द्रियविषयोने ज सुख माने छे ते जीव अभव्य
छे, चैतन्यसुखनी श्रद्धा वगरनो ते जीव संसारमां ज परिभ्रमण करे छे ने दुःखने ज
अनुभवे छे. आत्माना सुखनी श्रद्धा वगर तेने सुखनो अनुभव क्यांथी थाय?
एवी ज रीते गाथा ७७मां कहे छे के, पुण्य अने पाप ए बंनेना फळमां
ईन्द्रियविषयो ज छे, ने ईन्द्रियविषयोमां जेओ रमे छे तेओ दुःखी ज छे, तेमां (पापमां
के पुण्यमां) क्यांय चैतन्यसुख वेदातुं नथी, तेथी मोक्षार्थी–मुमुक्षुने माटे ते बंनेमां
जराय तफावत नथी, बंने सरखां ज छे; बंनेमां सुखनो अभाव छे. जे जीव आम नथी
मानतो, अने पुण्यमां के पुण्यना फळरूप ईंद्रियविषयोमां सुख माने छे ते जीव
मिथ्यात्वमोहथी घेरायेलो थको घोर संसारमां परिभ्रमण करे छे. अने जे जीव पुण्य
तेमज पाप बंनेने विभावरूपे सरखा जाणीने, ते बंनेथी जुदी जातनो एवो शुद्धभाव
प्रगट करे छे ते जीव अल्पकाळमां वीतराग थईने मोक्षसुखने अनुभवे छे.
* मने गमे *
मने गमे आतमराम
करुं शाने बीजुं काम?
तन–धनमां नहीं सुखनुं नाम,
सुख–शांतिनुं हुं छुं धाम
जग जाणे नहि एनुं नाम,
गुरु बतावे सुखनुं धाम;
जेने समजाये आ भेद,
तेनो थाये संसार छेद.