निमित्त हो, तेमां क्यांय धर्मी पोतानुं सुख मानता नथी. समवसरणादि संयोगो
शुभनां निमित्तो छे, स्त्री आदि संयोगो अशुभनां निमित्तो छे,–तेमां के ते तरफना
राग भावमां क्यांय धर्मी सुख मानता नथी, एमां सुख छे ज नहि; चैतन्यनुं सुख
चैतन्यथी बहार केम होय? चैतन्यस्वरूपी आत्मा पोते स्वयमेव सुखस्वभावी छे,
सुखना संवेदन माटे बहारना कोई पदार्थनी अपेक्षा तेने नथी.
धर्मी हवे बहारमां क्यांय सुखनी कल्पना करे नहि. अंदरमां ज्ञानकळा जागी त्यां
धर्मीनी ज्ञानचेतना जगतना विषयोथी विरक्त थई गई. अहो, चैतन्यनुं सुख
चखाडनारा वीतरागनां वचनो खरेखर अद्भुत छे, अमृतथी पण मीठां छे; तेनुं
रहस्य समजतां परम प्रसन्नता थाय छे ने आत्मामांथी आनंद झरे छे.
संसारथी पाछो फरीने, सर्वे रागथी पाछो वळीने, अंदर चैतन्यना सुख तरफ,
मोक्षमार्गना वेगे चड्यो तेने हवे विशेष भव होय नहि, ते अल्पकाळमां मोक्ष पामे
छे.–धर्मीनी अंदरनी दशा अलौकिक, अतीन्द्रिय होय छे.
समस्त राग अने विषयो–एम बंनेनुं सर्वथा भेदज्ञान करावीने जिनवचन
विषयोनुं विरेचन करावे छे ने चैतन्यसुखनो उत्साह जगाडे छे.–अहो, चैतन्यनुं
सुख आपनारां आवां जिनवचनो महान उपकारी छे.
सुख पासे तेमां सुख जरापण मानतो न होय; ने कोई अज्ञानी स्त्री आदिनो
संयोग छोडीने