एमां तो जगतनो नियम समाई जाय छे. एवो सर्वज्ञ ज्ञानस्वभाव जेना हृदयमां बेठो
ते तो केवळीप्रभुनो पुत्र थयो. अनंतकाळमां नहि आवेलो अपूर्व आनंद तेने
अनुभवमां आवे छे.
तुं आत्माना हितमां लाग. दुनियाना जीवो चाहे माने–न माने, एनी साथे तारे कांई
संबंध नथी. अरे, दुनिया दुनिया पासे रही, तुं तारा आत्मा पासे आव...तारो आनंद
तारा आत्मामां छे, दुनिया पासे कांई तारो आनंद नथी.
आत्माना महान आनंदनुं जे स्वसंवेदन कर्युं, तेनो ज नमूनो आ समयसारमां छे. तेवो
ज आनंद निजवैभवने ओळखतां सम्यग्द्रष्टिने अनुभवाय छे आचार्यदेव कहे छे के
अहो! आत्माना आवा शांत–अमृतरसने हे भव्यजीवो! तमे अत्यारथी मांडीने
सदाकाळ पीओ. एना वेदनथी आत्माने परम तृप्ति थाय छे.
जीव बिनगुन्हेगार छे, निर्दोष छे, ते संसारनी जेलमां पडतो नथी, पण संसारथी मुक्त
थाय छे. अरे, आ संसारना प्रपंच अने दुःख, तेनाथी छूटवा माटे तुं ज्ञानचेतनानो
अनुभव कर. ज्ञानचेतना वगर चैतन्यनी शांतिनो बीजो कोई उपाय नथी.
जाणे तो तेनी परम प्रीति जागे, ने बहारनो बधानो महिमा छूटी जाय. तेने स्व–
सन्मुखताथी आत्माना अपूर्व आनंदसहित सम्यग्दर्शन थाय. आ सम्यग्दर्शन छे ते
निश्चयथी आत्मा ज छे; आत्माना परिणाम आत्माथी जुदा नथी. आवा सम्यग्दर्शनने
हे भव्य जीवो! तमे भावथी धारण करो.–एम भगवान जिनदेवना परमागमनो
उपदेश छे.