अरे, चोरासीना अवतारमां जीवने क्यांय सुख नथी, धर्मीपुत्र–जेणे आत्माने
क्यांय मने चेन नथी; आ संसार कलेश अने दुःखथी भरेलो छे, तेनाथी हुं हवे छूटवा
मांगुं छुं ने आनंदथी भरेलो मारो आत्मा, तेने साधवा हुं वनमां जवा मांगुं छुं; माटे हे
माता! दीक्षा माटे मने रजा आपो. अमे आ संसारमां बीजी माता नहीं करीए.–आ
प्रमाणे वैराग्यवंत धर्मात्मा आत्माने साधवा चाली नीकळे छे. अंदर जेने रागथी भिन्न
आत्मानो अनुभव छे तेनी आ वात छे. अंदरमां मोक्षनो मार्ग जेणे जोयो छे ते तेने
माता! दीक्षा माटे हुं जाउं छुं...आत्माना आनंदनुं धाम अंतरमां जोयुं छे तेने साधवा हुं
जाउं छुं...माटे मने रजा आप! मातानी आंखमांथी आंसुनी धारा वहे छे ने पुत्रने
रोमेरोमे वैराग्यनी छाया छवाई गई छे; ते कहे छे के अरे माता! जनेता तरीके तुं मने
सुखी करवा मांगे छे, तो हुं मारा सुखने साधवा माटे जाउं छुं, तुं मारा सुखमां विघ्न न
करीश; बा! आत्माना आनंदने साधवा हुं जाउं छुं, तेमां तुं दुःखी थईने मने विघ्न न
करीश...हे जनेता! मने आनंदथी रजा आप. हुं आत्माना आनंदमां लीन थवा माटे
जाउं छुं.