: ३६ : आत्मधर्म : मागशर : रप००
हुं विघ्न नहि करुं. तारा सुखनो जे पंथ छे ते ज अमारो पंथ छे. मातानी आंखमां तो
आंसुनी धार चाली जाय छे ने वैराग्यथी कहे छे: हे पुत्र! आत्माना परम आनंदमां
लीनता करवा माटे तुं जाय छे, तो तारा सुखना पंथमां हुं विघ्न नहि करुं...हुं तने नहि
रोकुं...मुनि थईने आत्माना परम आनंदने साधवा माटे तारो आत्मा तैयार थयो छे,
तेमां अमारुं अनुमोदन छे. बेटा! तुं आत्माना निर्विकल्प आनंदरसने पी. अमारे पण
ए ज करवा जेवुं छे. अमारां धन्य भाग्य के अमारो पुत्र केवळज्ञान अने सिद्धपदने
पामे!–आम माता पुत्रने रजा आपे छे.
अहा! आठ वर्षनो कलैयोकुंवर ज्यारे वैराग्यथी आ रीते माता पासे रजा
मांगतो हशे, ने माता ज्यारे वैराग्यपूर्वक तेने सुखपंथे विचरवानी रजा आपती हशे,
–ए प्रसंगनो देखाव केवो हशे!!
पछी ए नानकडो राजकुंवर ज्यारे दीक्षा लईने मुनि थाय,–हाथमां मोरपींछी ने
कमंडळ लईने नीकळे–त्यारे तो अहा! जाणे नानकडा सिद्धभगवान उपरथी ऊतर्या!
वैराग्यनो अबधूत देखाव! आनंदमां लीनता! वाह रे वाह!! धन्य तारी दशा!
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शूरवीर थईने तुं मोक्षपंथे आव
(प्रभुनो मारग छे शूरानो)
श्रीगुरु शिखामण आपे छे के हे भव्य! आत्माना अनुभव माटे सावधान
थाजे...शूरवीर थाजे...जगतनी प्रतिकूळता देखीने कायर थईश नहि...प्रतिकूळता
सामे न जोईश, शुद्धआत्माना आनंद सामे जोजे. शूरवीर थईने–उद्यमी थईने
आनंदनो अनुभव करजे. ‘हरिनो मारग छे शूरानो...’ ...ते प्रतिकूळतामां के
पुण्यनी मीठासमां क्यांय अटकता नथी; एने एक पोताना आत्मार्थनुं ज काम
छे. ते भेदज्ञानवडे आत्माने बंधनथी सर्वथा प्रकारे जुदो अनुभवे छे. आवो
अनुभव करवानो आ अवसर छे–भाई! तेमां शांतिथी तारी चेतनाने अंतरमां
एकाग्र करीने त्रिकाळी चैतन्यप्रवाहरूप आत्मामां मग्न कर...ने रागादि समस्त
बंधभावोने चेतनथी जुदा अज्ञानरूप जाण. आम सर्व प्रकारे भेदज्ञान करीने
तारा एकरूप शुद्धआत्माने साध. मोक्षने साधवानो आ अवसर छे.
अहो, वीतरागना मारगडा जगतथी जुदा छे. जगतना भाग्य छे के
संतोए आवो मारग प्रसिद्ध कर्यो छे. आवो मारग पामीने हे जीव! भेदज्ञान वडे
शुद्धआत्माने अनुभवमां लईने तुं मोक्षपंथे आव.