Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : ३७ :
समाचार
–चालु (अनुसंधान टाईटल पानुं–र)
त्रीजुं–जैनोमां रात्रे खावानुं के अळगण पाणी पीवानुं तो होय ज नहि.
सिनेमाना भ्रष्टाचारी संस्कार पण शोभे नहि. अरे बापु! आत्माने साधवा माटे, ने
धर्मसाहित्यना अभ्यास आडे तने एवी विकथानो वखत केम मळे छे? के एमां रस
केम आवे छे? वळी मध के मधवाळी दवाओ, मांसाहारी जीवो साथे खान–पाननो
व्यवहार, ज्यां ईन्डां–मांस वपराता होय एवी होटल वगेरेमां जवानुं–ए पण
मुमुक्षुजीवने होय नहि–साधारण जैनने, के जेने पापनो भय होय–एवा आर्य–
सज्जनने पण ए वस्तुओ होय ज नहि.
बंधुओ, आ बधी वातोनो विचार करजो; वात तो छे नानी, पण महत्त्व छे
मोटुं; माटे ते बधुं आपणा समस्त जैनसमाजमांथी जडमूळथी ऊखडी जाय–तेम करजो;
ए बधुं सहेलाईथी थई शके तेवुं छे. माटे वीरनाथप्रभुना मोक्षगमनना आ महान
वर्षने सारी रीते शोभाववा आटलुं जरूर करजो. बीजुं पण घणुं करवानुं छे...जे
यथाअवसरे कहेवाशे.
परमागममंदिरनुं काम राबेता मुजब चाली रह्युं छे. फागण सुद १३ नुं मंगल
मूरत नजीक आवी रह्युं छे ने महान उत्सव माटे हवे तैयारीओ थवा मांडी छे. अने
गामेगामना मुमुक्षु कार्यकरोनी एक खास मिटिंग आ मासमां ता. ८–९ ना रोज
सोनगढमां उत्सवसंबंधी बधा आयोजनोनो विचार करवा माटे थई रही छे. अने हवे
तुरतमां महावीरप्रभुनी अद्भुत (अने सौराष्ट्रमां सौथी मोटी) प्रतिमा सोनगढमां
आवशे–ते माटे भक्तजनो ईन्तेजारीथी राह जोई रह्या छे. सोनगढना मंगल उत्सव
बाद तुरत गढडा शहेरमां वेदी प्रतिष्ठानुं मूरत छे; एटले उत्सव पछी गुरुदेवनो विहार
थशे. ते संबंधी कार्यक्रम नक्की थये हवे पछी जणावीशुं.
भावनगर:– कारतक वद एकमना रोज भावनगर तेमज सोनगढना दि.
जैनसंघना र०० जेटला मुमुक्षु भाई–बहेनो घोघाना प्राचीन दि. जिनमंदिरोना दर्शनार्थे
गया हता, त्यां आनंद–उल्लासथी जिनेन्द्रदेवना भक्ति–पूज्न कर्या हता. घोघामां
सौराष्ट्रना सौथी प्राचीन बे हजार वर्ष जेटला पुराणा जिनबिंबो बिराजे छे. घोघानी
यात्रा बाद भावनगर आवीने, विद्वान भाईश्री नवलभाई जे. शाहना सुहस्ते
वीतरागविज्ञान जैन पाठशाळानुं उद्घाटन थयुं हतुं.–आ एक प्रशंसनीय अने जरूरी
कार्य छे. पाठशाळामां अभ्यास करता बाळकोने धन्यवाद!