अनेकान्तमय ज्ञानवस्तुने ते ओळखतो नथी, तेथी एवा जीवोने अनेकान्तमय
आत्मवस्तुनी ओळखाण कराववा अरिहंत भगवाने अनेकान्तवडे तेनो उपदेश कर्यो
छे.
पोतानी आत्मवस्तु छे ते पोतापणे सत् छे, ने अन्य पर पदार्थोरूपे ते असत् छे. आ
रीते आत्मवस्तु प्रसिद्ध थाय छे. जेम आत्मा पोतापणे छे तेम जो परपणे पण आत्मा
शके. आत्मा पोताना चेतन–गुण–पर्यायोरूपे परिणमे छे, तेम जो जडना के परना गुण–
पर्यायरूपे पण ते परिणमे, तो आत्मानुं कोई स्वरूप ज सिद्ध न थाय. पण ज्ञानमात्र
आत्मवस्तु पोताना ज्ञान साथे तन्मय वर्तता आत्माना अनंत धर्मो साथे परिणमे छे,
ने परथी ते भिन्न परिणमे छे,–आ रीते पोताना स्वरूपथी ज अनेकान्तस्वरूपे आत्मा
प्रकाशे छे. अनेकान्तवडे आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने अनुभववो ते भगवान
अर्हंतदेवनुं अमोघ शासन छे, ते मोहने हणीने भगवान आत्माने सत्य स्वरूपे प्रसिद्ध
करे छे.
भगवान लक्ष्यपणे प्रसिद्ध थाय छे. आवा आत्माने जाणतां परभावथी भिन्न ज्ञाननुं
परिणमन थयुं ते ज साचो वैराग्य छे, ते ज्ञानमां परम अनाकुळतारूप आनंद पण छे,
तेमां पवित्रता पण छे, तेमां ईंद्रियोथी पार एवुं अतीन्द्रियपणुं छे–स्वसंवेदनप्रत्यक्षपणुं
छे,–एम अनंत चैतन्यधर्मो एकसाथे ज्ञानभावरूप परिणमी रह्या छे.–आ ज अनेकान्त
वस्तुस्वरूपने सम्यग्ज्ञानी ज जाणे छे. अहो, वीरनाथनुं अनेकान्तशासन कोई अद्भुत
परम गंभीरताथी भरेलुं छे. कोईपण पडखेथी तेने नक्की करवा जतां ज्ञान परथी
नास्तिपणुं करीने, अंतरमां अनंतगुणथी भरपूर स्वभावनी अस्तिमां प्रवेशी जाय छे,
एटले शुद्धतारूपे तेनुं परिणमन थाय छे.–आ ज