Atmadharma magazine - Ank 362
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : रप०० आत्मधर्म : ५ :
ते ज वस्तु सर्वज्ञदेवे उपदेशी छे. अज्ञानीने ज्ञानमात्र वस्तु अनेकान्तपणे प्रसिद्ध नथी,
अनेकान्तमय ज्ञानवस्तुने ते ओळखतो नथी, तेथी एवा जीवोने अनेकान्तमय
आत्मवस्तुनी ओळखाण कराववा अरिहंत भगवाने अनेकान्तवडे तेनो उपदेश कर्यो
छे.
* मोहने हणवा माटे अरिहंतदेवे उपदेशेलुं अमोघ–साधन एटले अनेकांत *
जगतमां जीवरूप ने अजीवरूप अनंत पदार्थो छे; तेओ बधा पोतपोताना
स्वरूपमां सत् छे, ने बीजाना स्वरूपे तेओ सत् नथी–असत् छे. तेमां आ ज्ञानमात्र
पोतानी आत्मवस्तु छे ते पोतापणे सत् छे, ने अन्य पर पदार्थोरूपे ते असत् छे. आ
रीते आत्मवस्तु प्रसिद्ध थाय छे. जेम आत्मा पोतापणे छे तेम जो परपणे पण आत्मा
होय तो तेनुं स्वरूप ज नक्की न थई शके, एटले परथी भिन्न तेनो अनुभव ज न थई
शके. आत्मा पोताना चेतन–गुण–पर्यायोरूपे परिणमे छे, तेम जो जडना के परना गुण–
पर्यायरूपे पण ते परिणमे, तो आत्मानुं कोई स्वरूप ज सिद्ध न थाय. पण ज्ञानमात्र
आत्मवस्तु पोताना ज्ञान साथे तन्मय वर्तता आत्माना अनंत धर्मो साथे परिणमे छे,
ने परथी ते भिन्न परिणमे छे,–आ रीते पोताना स्वरूपथी ज अनेकान्तस्वरूपे आत्मा
प्रकाशे छे. अनेकान्तवडे आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने अनुभववो ते भगवान
अर्हंतदेवनुं अमोघ शासन छे, ते मोहने हणीने भगवान आत्माने सत्य स्वरूपे प्रसिद्ध
करे छे.
* ज्ञाननो अनुभव–ए ज अरिहंतमार्गनी उपासना *
अहो, वस्तुस्वरूप कोई अलौकिक छे; ते अनेकान्त–ज्ञानवडे ज प्रसिद्ध थाय छे,
–अनुभवमां आवे छे. अहो, ज्ञानमात्र चेतनभावने लक्षमां लेतां तो आखो चैतन्य–
भगवान लक्ष्यपणे प्रसिद्ध थाय छे. आवा आत्माने जाणतां परभावथी भिन्न ज्ञाननुं
परिणमन थयुं ते ज साचो वैराग्य छे, ते ज्ञानमां परम अनाकुळतारूप आनंद पण छे,
तेमां पवित्रता पण छे, तेमां ईंद्रियोथी पार एवुं अतीन्द्रियपणुं छे–स्वसंवेदनप्रत्यक्षपणुं
छे,–एम अनंत चैतन्यधर्मो एकसाथे ज्ञानभावरूप परिणमी रह्या छे.–आ ज अनेकान्त
छे; ने आ ज सर्वज्ञ भगवाननो उपदेश एटले के जिनशासन छे. आवा अनेकान्तमय
वस्तुस्वरूपने सम्यग्ज्ञानी ज जाणे छे. अहो, वीरनाथनुं अनेकान्तशासन कोई अद्भुत
परम गंभीरताथी भरेलुं छे. कोईपण पडखेथी तेने नक्की करवा जतां ज्ञान परथी
नास्तिपणुं करीने, अंतरमां अनंतगुणथी भरपूर स्वभावनी अस्तिमां प्रवेशी जाय छे,
एटले शुद्धतारूपे तेनुं परिणमन थाय छे.–आ ज