आवो आत्मअनुभव करवो ते ज छे. ते अनुभवमां ज्ञानपर्याय शुद्ध आत्मा साथे
अभेद थई, ते उदयभावोथी जुदी पडी गई. ते अनुभवमां ज्ञान साथे अनंतधर्म सहित
आत्मा परिणमी रह्यो छे. आत्मानो कोई धर्म ज्ञानपरिणमनथी जुदो रही शकतो नथी,
प्रकाशे छे; तेमां महावीरनुं कहेलुं आखुं जैनशासन आवी जाय छे. आवुं जैनशासन
समजीने महावीरप्रभुना मोक्षनो उत्सव उजववा जेवो छे.
तेमतेम तेमां वधुने वधु गंभीरता देखाती जाय छे. एटले,
महिमा पूर्वक गुरुदेव कहे छे के अहो! आ शक्तिमां तो घणां
रहस्यो भर्या छे. आ शक्तिओ तो हीरले कोतरवा जेवी छे.
‘सोनेरी’ करवानी भावना गुरुदेवे व्यक्त करी छे. अरे,
अगाध महिमा आत्मानी एकेक शक्तिमां भर्यो छे, तेनुं माप
ऊठतांवेंत आ चैतन्यशक्तिओनो जाप जपे छे–तेनां भावोनुं
ऊंडुं मनन करे छे, ने कोई कोई वार उल्लसता अपूर्व भावो
आप हवे वांचशो.