Atmadharma magazine - Ank 363
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : पोष : रप००
अनुभवमां समस्त जिनशासन समाई जाय छे; जिन भगवानना बधा उपदेशनो सार
आवो आत्मअनुभव करवो ते ज छे. ते अनुभवमां ज्ञानपर्याय शुद्ध आत्मा साथे
अभेद थई, ते उदयभावोथी जुदी पडी गई. ते अनुभवमां ज्ञान साथे अनंतधर्म सहित
आत्मा परिणमी रह्यो छे. आत्मानो कोई धर्म ज्ञानपरिणमनथी जुदो रही शकतो नथी,
अनंतधर्मो एक साथे तेमां आवी जाय छे, तेथी ते ज्ञान पोते स्वयमेव अनेकांतस्वरूपे
प्रकाशे छे; तेमां महावीरनुं कहेलुं आखुं जैनशासन आवी जाय छे. आवुं जैनशासन
समजीने महावीरप्रभुना मोक्षनो उत्सव उजववा जेवो छे.
जय महावीर
* * * * *
हीरले मढवा जेवी सोनेरी शक्तिओ
हवे आप वांचशो–वीरतीर्थंकरे बतावेली
आत्मशक्तिओ. आत्मशक्तिना वर्णनमां एवा गंभीर भावो
भर्या छे के जेम जेम ऊंडा ऊतरीने तेने खोलीए छीए
तेमतेम तेमां वधुने वधु गंभीरता देखाती जाय छे. एटले,
ए शक्तिना भावोने खोलतां, प्रवचनमां वारंवार अति
महिमा पूर्वक गुरुदेव कहे छे के अहो! आ शक्तिमां तो घणां
रहस्यो भर्या छे. आ शक्तिओ तो हीरले कोतरवा जेवी छे.
परमागम–मंदिरमां पण आ शक्तिना वर्णननो भाग
‘सोनेरी’ करवानी भावना गुरुदेवे व्यक्त करी छे. अरे,
सोनाथी ने हीरलाथी पण जेना महिमानुं माप न थाय एवो
अगाध महिमा आत्मानी एकेक शक्तिमां भर्यो छे, तेनुं माप
तो अनुभव द्वारा ज थई शके. गुरुदेव रोज परोढीये
ऊठतांवेंत आ चैतन्यशक्तिओनो जाप जपे छे–तेनां भावोनुं
ऊंडुं मनन करे छे, ने कोई कोई वार उल्लसता अपूर्व भावो
प्रवचनमां प्रगट करे छे. एवी शक्तिनां प्रवचननी प्रसादी
आप हवे वांचशो.