समज्यो तेने तीर्थंकरनी वाणीनो विरह नथी;
तीर्थंकरदेवे वाणीमां जे कह्युं तेनो सार आ
परमागममंदिरमां कोतराई गयुं छे. वाह! जिनवाणी
जेमां वसे–एनी शोभानी शी वात! अने ए
जिनवाणीना साररूप शुद्धात्मा जेणे स्वसंवेदनवडे
पोताना आत्मामां कोतरी लीधो ते जीव न्याल थई
गयो. एवा जीवनी स्वानुभूतिमां केवी अद्भुत
आत्मशक्तिओ उल्लसे छे–तेनुं आ वर्णन छे.
ज्ञानमात्र भाव आत्मा ज्ञानक्रियारूपे परिणमे छे तेमां तेना अनंतधर्मोनुं
निर्बाधपणे प्रकाशे छे. ज्ञानमात्र भाव पोते अनंत धर्मस्वरूप छे, ते धर्मोनुं वर्णन अहीं
आचार्यदेव अद्भुत–अलौकिक रीते करवा मांगे छे; तेमां अनंतधर्मोमांथी अहीं ४७
शक्तिओ वर्णवी छे. तेमां सौथी पहेली ‘जीवत्वशक्ति’ छे.
जवा छतां चैतन्यप्राणथी जीव स्वयं जीवे छे; एवी जीवत्वशक्ति ज्ञानभावमां साथे ज